Friday 23 January 2015

सर्द रातों

ठण्ड सर्द रातों में
उकड़ूँ बन रजाई में
दुबकना मुझे भाता है

सुबह सुबह रजाई में
गर्म गर्म चाय मिले
तो इस उम्र में भी
  अपने पतिदेव पर प्यार मुझे आता है ,

Tuesday 20 January 2015

क्यूँ हमने प्यार किया


 क्यूँ  हमने प्यार किया
प्यार पे ऐतबार किया
बरसों तक तेरा जानम
क्यूँ इन्तेजार किया
छिप छिप  रोये बहुत
नैनों  को बेकार किया
तेरे ही कारण जानम
जीवन दुश्वार किया
 समझ न पाये अब तक
 क्यूँ  हमने प्यार किया 

Saturday 10 January 2015

सीखा

खुद को मिले जख्मों से
 हमने
सीखा औरों का दर्द बाँटना 

Tuesday 6 January 2015

शिद्दत

इस ज़माने में जहाँ वक़्त के साथ साथ
 ख़यालात भी बदल जाते हैं
तुम तो शायद सोच भी  नहीं पाते होगे
कि  कितनी शिद्दत से तुम्हे कोई चाहता है
तुम्हारी यादों के सामने
 कितने बेबस और मजबूर हो जाते हैं हम
एक याद तुम्हारी,
  हमारी जान लेने के लिए आज भी काफी है सनम