Thursday 14 July 2016

बंदिशें,बंदिशें, बंदिशें

बंदिशें,बंदिशें, बंदिशें
इन  बंदिशों ने उजाड़ दी,
 मेरी सारी  ख्वाइशें

बंदिशों में  बचपन भी  बीता और जवानी भी
कुछ जरूरी, कुछ गैर जरूरी बंदिशें
कुछ कही और  कुछ अनकही बंदिशें

अब इस उम्र में सीखा था
खुल कर हंसना, मुस्कराना
गाना और गुनगुनाना

न जाने कहाँ से उग आई
कुकुरमुत्तो  की  तरह,  फिर से वोही
बंदिशें,बंदिशें, बंदिशें 

Saturday 9 July 2016

सागर किनारे दूर जो देखा

सागर किनारे दूर जो देखा
सांझ का सूरज लालिमा समेटे
सागर से मिलने को था जा रहा
गजब था नजारा
घड़ी दो घड़ी का मिलन था वो प्यारा
सूरज को सागर में देख समाते
अँधेरा लगा अपने पंख फैलाने
आती जाती लहरें टकरा रही थीं
अचानक से इक बड़ी लहर ने जो भिगोया मुझे
वापिस मैं चल दी हौले हौले
 जैसे हो कोई  दीवाना
मन में समेटे हुए
सागर, सूरज का मिलन वो सुहाना


Sunday 3 July 2016

छुट्टियां

रोटी सेंकते हुए आवाज लगाने को होती हूँ
आओ बेटा, हमारे साथ खाना खा लो
याद आता है तभी, वो तो चला गया है
रात सोते में, जैसे आवाज देने को होती हूँ
याद आता है तभी, साथ वाला कमरा खाली है
पलकें नम हो जाती हैं
दवाई खाने के बाद भी, नींद नहीं आती है
जागते हुए ही, फिर सुबोह हो जाती है
 बच्चों के साथ दिन रात, हवा से उड़ जाते हैं
आँखों के आंसू अगली छुट्टियों का,इंतजार कराते हैं


Friday 1 July 2016

तस्वीर

देख कर तस्वीर अपनी पुरानी
हम खुद पे फ़िदा हो गए
बेवफा वक़्त के साथ चलते चलते
हाय रे ,हम क्या थे ,क्या हो गए