Monday 24 September 2018

Saturday 22 September 2018

चमत्कार

कितनी हसरत दिल में थी
तुम से मिलने की मगर
तुम ने इक बार मुड़  के
  देखा भी  नहीं

फ़िक्र करते हो दूर अपने भक्तों की
मेरी बार फिर क्यों देर इतनी करी
माना  आस्था मेरी गोते खाती थी
हाँ हूँ मै ढेर अवगुणों से भरी

छोडूंगी न आस आखिरी स्वांस तक
देर से ही सही , सुनता है तू अपने बच्चो की
चमत्कार तेरी दुनिया में होते है ना
कान्हा मेरी भी झोली तुझे भरनी होगी






Wednesday 19 September 2018

साईँ

साईँ तेरे दर पे आकर
बहुत कुछ पहली बार देखा
इनायत तेरी ऐसी हुई
तुझे भी देखा, तेरा दरबार भी देखा 

Monday 17 September 2018

गुजारिश

 गुजारिश


सला#सहारा#आसरा


क्यूं#संवारना#दिल#अनजान#परेशानी


3 THINGS I WANT TO CHANGE ABOUT MYSELF

कभी कभी मुझे लगता है मुझे खुद को बदलना होगा | जैसे मैं दूसरों से उनके व्यवहार पर प्रश्न कर देती हूँ | कोई छोटा हो या बड़ा इसे सहन  नहीं कर पाते | उनसे मेरे सम्बन्ध बिगड़ जाते हैं | मुझे अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना होगा | दूसरा मुझे अपनी भाषा को मीठी चाशनी चढ़ा कर पेश करना होगा | तीसरा मुझे अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए कुछ दिनचर्या में बदलाव लाना होगा | 

विडंबना


जाओ जी, जाओ.


लफ्जों से खेलना

दी हमें रब ने ढेरों परेशानियाँ
डरे नहीं, उन्हें हँस कर झेला
पर जब कुछ अपने ही
लगे खेलने हमारे जज्बातों से
हमें अपने लफ्जों से
मजबूरन खेलना ही पड़ा     

Sunday 2 September 2018

मोबाइल फोन (कुछ यूं ही )

सुबह उठकर ईश्वर को प्रणाम कर , नित्यक्रम से निबटकर, मैंने बिस्तर पर बैठकर जैसे ही मोबाइल फ़ोन उठाया तो देखा वो काम नहीं कर रहा था | मैंने वहीँ से ही चिल्लाकर रसोई में चाय बनाते पतिदेव को कहा , मेरा मोबाइल काम नहीं कर रहा जरा अपना चेक करिये.| वो चाय लेकर कमरे में आते हुए बोले ,मेरा भी मोबाइल काम नहीं कर रहा और अभी अभी न्यूज़ पेपर में पढ़ा कि  रात १२ बजे से अनिश्चित काल के लिए मोबाइल फोन का प्रयोग बंद कर दिया गया है |सुनकर मेरी तो हालत ही खराब हो गयी, सोचा कैसे पता चलेगा कि  मम्मी की रात कैसे बीती ?  बच्चों की खबर कैसे मिलेगीऔर घबरा कर रोना शुरू कर दिया |  कैसे चलेगा? इन्होने मुझे समझाने की कोशिश कि  घबराओ नहीं.शुरू में थोड़ी परेशानी होगी| जिंदगी को धीरे धीरे पुरानी  पटरी पर लाना होगा | मैंने खीझते हुए लहजे में कहा "आप प्रैक्टिकल बात नहीं करते | पहले की बात और थी.अब कैसे चलेगा? मै तो बच्चो और मम्मी डैडी का हाल जाने बिना १-२ दिन भी नहीं जी सकती| व्हाट्सप्प और फेसबुक की बात तो छोड़ ही दो.अब पूरा दिन कैसे बीतेगा?" तभी मेरी नजर अपने लैंडलाइन फोन पर पड़ी,  उसे फ़ौरन उठा कर देखा | वो काम कर रहा था| मेरी जान में जान आयी और मम्मी को फ़ोन मिलाया.| वो भी मोबाइल को बंद देख परेशान थी |  फिर भाग कर कंप्यूटर देखा | इंटरनेट काम कर रहा था| लगे हाथ बच्चो को मेल की और जल्दी ही जवाब देने की ताकीद भी की|  फिर ख़ुशी में  जैसे ही हुर्रे किया कि  नींद खुल गयी फ़ौरन मोबाइल फ़ोन देखा वो काम कर रहा था| इसको एक भयानक  सपना  जान   मैंने राहत  की सांस ली|