SUNITA KATYAL POETRY
Sunday, 14 May 2017
बिजी
एक चिंता ,भीतर ही भीतर
खाये जा रही है
किसके सहारे ,
कटेगा बुढ़ापा हमारा
नयी पीढ़ी तो यारों
बिजी बहुत है
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