कितनी हसरत दिल में थी
तुम से मिलने की मगर
तुम ने इक बार मुड़ के
देखा भी नहीं
फ़िक्र करते हो दूर अपने भक्तों की
मेरी बार फिर क्यों देर इतनी करी
माना आस्था मेरी गोते खाती थी
हाँ हूँ मै ढेर अवगुणों से भरी
छोडूंगी न आस आखिरी स्वांस तक
देर से ही सही , सुनता है तू अपने बच्चो की
चमत्कार तेरी दुनिया में होते है ना
कान्हा मेरी भी झोली तुझे भरनी होगी
तुम से मिलने की मगर
तुम ने इक बार मुड़ के
देखा भी नहीं
फ़िक्र करते हो दूर अपने भक्तों की
मेरी बार फिर क्यों देर इतनी करी
माना आस्था मेरी गोते खाती थी
हाँ हूँ मै ढेर अवगुणों से भरी
छोडूंगी न आस आखिरी स्वांस तक
देर से ही सही , सुनता है तू अपने बच्चो की
चमत्कार तेरी दुनिया में होते है ना
कान्हा मेरी भी झोली तुझे भरनी होगी
No comments:
Post a Comment