Sunday, 30 June 2013

बीते दिन

सावन जब झूम के आता है
बीते दिन याद दिलाता है 
मैं पहन के जब लहंगा चोली
माँ  के  घर अंगना में डोली 

डैडी जब घेवर लाते थे 
माँ तू खीर बनाती थी 
बाँध के राखी भाइयों को 
मैं खीर ,मिठाई खिलाती थी 

अब वो दिन सब बदल गए 
भाई दोनों परदेस गए 
अब राखी लिफाफों में जाती है 
उन्हें मेरी याद दिलाती है 

माँ अब भी खीर बनाती है 
और मुझे बुला खिलाती है 
 मै उनका मन बहलाती हूँ 
बीते दिन याद दिलाती हूँ 

मैं पहन के जब लहंगा चोली 
उनके घर अंगना में  डोली .

Saturday, 29 June 2013

ढलती उम्र

मैं बैठी घर के अंगना में
कुछ तनहा सी ,कुछ उदास सी
अचानक बिजली चमकने लगी
बरखा भी बरसने लगी
मैं उठ भीतर को चली
तभी पीछे से आवाज ये आई
कहाँ चली तुम कहाँ चली
आओ संग संग भीगें हम
बीते दिनों को याद करें
मैं उन्हें देख कर मुस्कायी
बोली, प्रिये  अब अपनी है उम्र ढली
ये मनचली अब नहीं भली
तभी मेघा  जोर गरजने लगे
बादल घनघोर बरसने लगे
ये जल्दी से  भीतर आये
हम खूब हँसे और खिलखिलाए .

Friday, 28 June 2013

बेटी

जब मेरा बेटा ब्याहाया
वो मेरे लिए बहु नहीं बेटी लाया

 वो ठुमक ठुमक जब चलती है
पायल तब रुन झुन बजती है
मेरा घर-आँगन खिल जाता है

वो जब सजती संवरती है
वो जब  खिल खिल हंसती है
मेरा तन मन खुश हो जाता है

प्रभु तेरा शुकराना है
तूने दिया मुझे नजराना है




Wednesday, 26 June 2013

कुछ हल्का फुल्का

बच्चों सुनाये क्या तुम्हे अपनी कहानी
भरी जवानी में भी हमने न की  कोई नादानी

अब तो भूल गए सब ,यारों दोस्तों से की थी जो मुलाकातें
याद है सिर्फ और सिर्फ घर गृहस्थी की बातें
सुबह जगाने के लिए पतिदेव पिलाते हैं चाय
ऑफिस जाते समय हम उनको करते हैं बाय बाय
फिर माता श्री से होती है गुफ्तगू
फिर थोडा सा आराम और सहेलियों से गुटरगूं
शाम को मोबाइल से पूछते हैं बच्चों का हाल चाल
रात को बनाते  हम रोटी और दाल

बस अब तो रह गयी यही जिंदगी
थोड़ी गृहस्थी और रब से बंदगी 

Sunday, 23 June 2013

जलप्रलय

जल प्रलय की इस त्रासदी में
कितने फंसे ,कितने  बचे और कितनी गयी जानें
ये तो राम ही जाने

जिन्हों ने खोया अपनों को
वो अभी भी उन्हें ढूँढ रहे
वो बह गए मलबे पानी में
उनका दिल नहीं माने

कितने फंसे ,कितने  बचे और कितनी गयी जानें
ये तो राम ही जाने

देख कर मंजर बिछी लाशों का
आँखें नम हो जाती हैं
और गला रुंध जाता है
 क्यों हुआ ऐसा ,ये कोई नहीं जाने

कितने फंसे ,कितने  बचे और कितनी गयी जानें
ये तो राम ही जाने

Saturday, 22 June 2013

दुआ

खुदा कबूल करता है
दुआ जब  दिल से होती है
बढ़ी  मुश्किल है य़े
 बढ़ी मुश्किल से होती है



UNKNOWN 

Monday, 17 June 2013

पहला प्यार

उनकी यादों से भीगी आँखें और धुंधली हुई नजर
घटा बन कर यूँ जब वो दिल में  छाए थे
भूलना चाहती हूँ की वो कभी मेरी जिंदगी में आये थे
पहले प्यार के   गीत   हमने भी   गुनगुनाये   थे 

शामे-अवध



पान की गिलोरी
महकते बेला के गजरों के नज़ारे 
कुल्फी और कॉफ़ी की दुकानों पर लोगों की कतारें
सड़क के दोनों ओर जगमगाती रौशनी की लड़ियाँ
शामे-अवध का अजब ही समा है
रात को  गंजिंग का अपना  अलग ही नशा है