सावन जब झूम के आता है
बीते दिन याद दिलाता है
मैं पहन के जब लहंगा चोली
माँ के घर अंगना में डोली
डैडी जब घेवर लाते थे
माँ तू खीर बनाती थी
बाँध के राखी भाइयों को
मैं खीर ,मिठाई खिलाती थी
अब वो दिन सब बदल गए
भाई दोनों परदेस गए
अब राखी लिफाफों में जाती है
उन्हें मेरी याद दिलाती है
माँ अब भी खीर बनाती है
और मुझे बुला खिलाती है
मै उनका मन बहलाती हूँ
बीते दिन याद दिलाती हूँ
मैं पहन के जब लहंगा चोली
उनके घर अंगना में डोली .