SUNITA KATYAL POETRY
Monday, 14 September 2015
साँझ
साँझ ढले सुरमई अँधेरे में
साँय साँय हवा जो चलती है
ठिठक ठिठक जाती हूँ मैं
लगता है जैसे तुमने बुलाया
यूँ लगता है जैसे कि तू आया
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