रीढ़ की हड्डियां मेरी भुर भुराने लगी हैं (degeneration of spine )
वो एक के ऊपर एक आने लगी हैं
एक दूजे से टकराने लगी हैं
हड्डियां गुस्ताख हो गयी हैं इतनी
आती जाती नसों को दबाने लगी हैं
इससे अंग प्रत्यंग हिल गया है मेरा
नाजुक कमर भी चरमराने लगी है
कभी कभी मन करता है
मैं हलकी फुलकी बन जाऊँ
दोनों हाथो को पंखो की मानिंद फैलाकर
इक चिड़िया सी अनन्त आकाश में उड़ जाऊँ
कभी इधर घूमूँ ,कभी उधर घूमूं
बादलों के भी आर पार आऊँ जाऊँ
ऐसे ही, उस अपरम्पार की सारी सृष्टि देख आऊँ
ऐसे ही,उस रचनाकार की रचना में मंडराऊँ