अपने बच्चों को हमने पढ़ाया, लिखाया
उन्हें आसमाँ में उड़ना सिखाया
हमे विश्वास भी है उन पर
जानते हैं, उनकी दिशा भी सही है
फिर क्यों ये मन उनका पीछा है करता
क्यों क्यों क्यों ?????????
हम क्यों नहीं उस छोटी चिड़िया की तरह
जो एक बार अपने बच्चों को उड़ना सीखा कर
छोड़ देती है, खुले आसमाँ में अकेले विचरने को
क्यों हम हर समय उनका साथ चाहते हैं
क्यों हर समय उन्हें पास चाहते हैं
कहीं हम उनकी बेड़ी तो नहीं बन रहे
हमारी ये मोह ममता,ये आसक्ति
क्यों कम नहीं हो रही
क्यों, क्यों, क्यों, आखिर क्यों ?????
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