SUNITA KATYAL POETRY
Sunday, 24 November 2013
आहटें
बहुत कोशिश से रोकी अपनी मुस्कराहटें
सुनी जब उनकी दबी दबी सी आहटें
रुख से हटाया उन्होंने जब पर्दा
होने लगीं हम दोनों में सुगबुगाहटें
Tuesday, 19 November 2013
गेसू
मेरे अधखुले से गेसू ,हवा में ऐसे उड़ें
जैसे कर रहे हो, इंतजार किसी का
उसे न आना था, वो न आया अब तक
रहता है अब भी , होंठों पर नाम उसी का
Tuesday, 12 November 2013
आसपास
क्यूं लग रहा है जैसे ,
तू कहीं आसपास है मेरे
दिल में दर्द सा हो रहा है ,
आँखें नम हो रही हैं याद में तेरे
Sunday, 10 November 2013
गुजरे हुए कल
मेरा धीमे धीमे गुनगुनाना
वो उनका हौले से मुस्कराना
गुम हो गए वो बीते हुए दिन
अब बाकी बचा है सिर्फ
पोपले मुंह से मिलने वालों को
गुजरे हुए कल के किस्से सुनाना
Saturday, 9 November 2013
पान
वो पान नहीं खाते
पान का शौक फर्माते हैं
मुँह में गिलौरी रखकर
हौले से चबाते हैं
देख के उनकी ये अदा
हम फ़िदा हो जाते हैं
Thursday, 7 November 2013
अजनबी
गर उसको मेरा ख्याल आता
पूछने वो मेरा हाल आता
क्या फायदा शिकवे शिकायतों से
हुए जो अजनबी अब हमारे लिए
क्यूँ दिल में उनके लिए मलाल आता
Friday, 1 November 2013
दिए
जिंदगी कि डगर में
दिए जलाओ प्रेम के
श्रद्धा और विश्वास के
ख़ुशी और उल्लास से
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