सर्द रातें, हलकी बूंदा बांदी और चले
जब नश्तर चुभोती बर्फीली हवाएं
कुछ लोग जो गठरी बने सोते हैं फुटपाथों पे
उनके दिलों से निकलती होगी चीत्कार हाय
ऐसे में कहो कैसे गणतंत्र दिवस की ख़ुशी मनायें
बस इतनी किरपा करना
प्रभु मेरा हाथ थामे रखना
मैं गिरने न पाऊँ कभी
तुम मुझे सम्भाले रखना
हरदम मेरे अंग संग रहना
मैं भटकने न पाऊँ कभी
चरणों में समेटे रखना
बस इतनी किरपा करना