SUNITA KATYAL POETRY
Saturday, 26 October 2013
हमदम
इश्क भी कमबख्त अजब शै है
जानते है हम वो गैर के हमदम हैं
उनसे बिछुड़े हुए हमें सालों गुजर गए
फिर भी एक नजर देखने को जी चाहता है
Friday, 18 October 2013
रब
रब जो करता है ,अच्छा करता है
अच्छे के लिए करता है
ये बात दीगर है
हम समझ देर से पाते हैं
अपने जज्बात नहीं रोक पाते हैं
रब को भला बुरा कह जाते हैं
Wednesday, 16 October 2013
हंसी
हंसने के लिए लाफिंग डे का इंतजार क्यों
आज मैं खिलखिला कर हंसी
मुझे देख फूल हंसे, कलियाँ भी हंसी,
गुड़िया हंसी और बुढ़िया भी हंसी
ये भी हंसा और वो भी हंसी
एक हंसी से हुई अनेक हंसी
यारा तुम भी हंसो, दुनिया भी हंसे
हंसी बढ़ेगी, बढ़ेगी हंसी
:D :D :D :D :D :D :D
नसीहत
जवानी मे मिली, इक नसीहत
रोज किसी से ना मिला करो
होगा इश्क़, होगी फजीहत
अब इस उम्र में कहते हैं लोग
मोहतरिमा ज्यादा मिला जुला करो
बढ़ेगा प्यार और अपनापन,
ना होगा डिप्रेशन
और रहेगी दुरुस्त तबियत
Monday, 14 October 2013
आगोश
बादल ने अपने आगोश में चंदा को लिया
चंदा ने अपनी चांदनी से उसे ठंडा किया
बादल ने जब सूरज को अपने आगोश में छिपा लिया
सूरज ने अपनी किरणों से उसे गर्मा दिया
माँ ने जब अपने लाल को
आगोश में ले कर कलेजे से लगाया
अपनी ममता की ठंडक दी
प्यार की तपिश से गरमाया
और खुद को भी तृप्त पाया
Friday, 11 October 2013
तस्वीर
जिंदगी की आखिरी तस्वीर देखने की
कोशिश कभी हमने भी की थी यारा
क्या करें ऐन वक़्त पर
मौत ही दे गयी
दगा
Thursday, 10 October 2013
समाज
समाज में रहकर समाज से क्यूँ नहीं लड़ना ?
मुझसे ये प्रश्न क्यूं बार बार है किया जाता?
दिल मेरा
है
घबराता
ये प्रश्न रात रात भर
है
जगाता
क्यूं मुझ पर विश्वाश नहीं है किया जाता?
समाज मे तो उसके अनुसार ही रहना होगा
छोटों और बड़ों को लिये साथ चलना होगा
चाहे इसे समझौता कहो या कहो मेरी मजबूरी
मुझे यहीं जीना और है यही मरना
मुझसे बागी नहीं बना जाता
समाज मे रहकर समाज से क्यूं नहीं लड़ना ?
मुझसे ये प्रश्न क्यूं बार बार है
किया
जाता?
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