SUNITA KATYAL POETRY
Saturday, 26 October 2013
हमदम
इश्क भी कमबख्त अजब शै है
जानते है हम वो गैर के हमदम हैं
उनसे बिछुड़े हुए हमें सालों गुजर गए
फिर भी एक नजर देखने को जी चाहता है
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