कब ख़त्म होंगी हाड़ कंपाती ये सर्द रातें
अवसाद भरी लम्बी काली जर्द रातें
मुझे नहीं भाती ये ठिठुराती रातें
कुछ धूप निकले, कुछ ठण्ड कम हो जाए
दिल में हो फागुनी हुलारे,बहे फागुनी बयारें
दिन हो उल्लसित , हो मस्त रातें
अवसाद भरी लम्बी काली जर्द रातें
मुझे नहीं भाती ये ठिठुराती रातें
कुछ धूप निकले, कुछ ठण्ड कम हो जाए
दिल में हो फागुनी हुलारे,बहे फागुनी बयारें
दिन हो उल्लसित , हो मस्त रातें
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