कभी कभी रात के अँधेरे में
तकिये पर रख कर सर
अधखुली उनींदी आँखों से
देखते है कुछ ख्वाब
अपने बच्चों के लिए
कैसे हो वो सब साकार
फिर इसी उधेढ़ बुन में खो जाते हैं
रब को भी मनाते हैं
नींद नहीं आती जब तक
ममता में ही गोते लगाते हैं
तकिये पर रख कर सर
अधखुली उनींदी आँखों से
देखते है कुछ ख्वाब
अपने बच्चों के लिए
कैसे हो वो सब साकार
फिर इसी उधेढ़ बुन में खो जाते हैं
रब को भी मनाते हैं
नींद नहीं आती जब तक
ममता में ही गोते लगाते हैं
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