SUNITA KATYAL POETRY
Tuesday, 22 March 2016
होरी
सखी
मैंने कान्हा संग खेली आज होरी री
मला गुलाल गालों पे उनके
भिगोदी उन्होंने मेरी साड़ी बरजोरी री
उनके प्रेम का रंग ऐसा चढ़ा री
छोड़ छाड़ दुनिया मैं उनकी होली री
1 comment:
Akhil Katyal
22 March 2016 at 23:22
lovely!
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lovely!
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