जीवन की उथल पुथल, कैसे सह रहा हूँ
भीतर से हूँ मै तनहा, न किसी से कह रहा हूँ
जीता है जग हमेशा, न कभी मैं हारा
चाहता नहीं हूँ कोई, कहे मुझे बेचारा
जीवन की उथल पुथल, कैसे सह रही हूँ
भीतर से हूँ मैं तनहा, न किसी से कह रही हूँ
जीता है जग हमेशा, न कभी मैं हारी
चाहती नहीं हूँ कोई,कहे मुझे बेचारी
भीतर से हूँ मै तनहा, न किसी से कह रहा हूँ
जीता है जग हमेशा, न कभी मैं हारा
चाहता नहीं हूँ कोई, कहे मुझे बेचारा
जीवन की उथल पुथल, कैसे सह रही हूँ
भीतर से हूँ मैं तनहा, न किसी से कह रही हूँ
जीता है जग हमेशा, न कभी मैं हारी
चाहती नहीं हूँ कोई,कहे मुझे बेचारी
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