अपने माँ बाप को दिन प्रतिदिन
बूढ़े होते देखना
कितना तकलीफदेह होता है, ये अहसास
भाई, तुम नहीं समझ पाओगे
करते हो तुम रोज, फोन कई कई बार
सुलझाते हो उनकी हर कठिनाई
हाँ, तुम आते हो
महीने दो महीने बाद
रहते हो ४-६ दिन
संवारते हो उनके सब काम
पर मैं तो मिलती हूँ ना नित
देखती हूँ, उनके शरीर का
आहिस्ता आहिस्ता क्षीण होना
चुप रहने पर भी,
उनके होंठों का अजब तरह से कांपना
एक हाथ पीछे रख कर
दुसरे हाथ से छड़ी पकड़
आधा झुक कर चलना
उनके हाथों पैरों का कम्पन
जो हर दिन बढ़ता जाता है
कितना तकलीफदेह है
ये सब नित देखना
भाई, तुम नहीं समझ पाओगे
माना वो अपनी परेशानी मुझसे छिपाते हैं
और तुम्हे बताते हैं
पर आँखें जो मेरी देखती हैं
उसको मैं झुठला नहीं पाती
कितना दुखद है ये अहसास
भाई, तुम नहीं समझ पाओगे
बूढ़े होते देखना
कितना तकलीफदेह होता है, ये अहसास
भाई, तुम नहीं समझ पाओगे
करते हो तुम रोज, फोन कई कई बार
सुलझाते हो उनकी हर कठिनाई
हाँ, तुम आते हो
महीने दो महीने बाद
रहते हो ४-६ दिन
संवारते हो उनके सब काम
पर मैं तो मिलती हूँ ना नित
देखती हूँ, उनके शरीर का
आहिस्ता आहिस्ता क्षीण होना
चुप रहने पर भी,
उनके होंठों का अजब तरह से कांपना
एक हाथ पीछे रख कर
दुसरे हाथ से छड़ी पकड़
आधा झुक कर चलना
उनके हाथों पैरों का कम्पन
जो हर दिन बढ़ता जाता है
कितना तकलीफदेह है
ये सब नित देखना
भाई, तुम नहीं समझ पाओगे
माना वो अपनी परेशानी मुझसे छिपाते हैं
और तुम्हे बताते हैं
पर आँखें जो मेरी देखती हैं
उसको मैं झुठला नहीं पाती
कितना दुखद है ये अहसास
भाई, तुम नहीं समझ पाओगे
बहुत सुंदर, अन्तरमन की आवाज.....
ReplyDelete