Wednesday, 31 July 2013

अमिताभ बच्चन

कविता लिखने का शौक भी अजब शौक है
इसमें लिखने से ज्यादा सुनाने का दिल करता है

अभी हमारी कविताएँ जरा मध्यम  स्तर  की हैं
तो रिश्तेदारों को पकड़ कर सुनाते हैं
बाहर वालों की घेराबंदी अभी नहीं कर पाते हैं

कल रात हमारे साथ कुछ गजब ही हो गया
अमिताभ बच्चन जी सपने में हमारे घर आये
बोले, मैडम सुना है, आप बहुत अच्छी कवितायेँ लिखती हैं
जरा हमें भी सुनाइए
हम न झिझके, न शरमाये
पूछा, आप ठंडा या गर्म कुछ लेंगे
वो बोले, फोर्मेलटी न करें, बस शुरू हो जाएँ
हम उन्हें एक के बाद एक कवितायेँ सुनाते रहे
वो बीच बीच में मुस्कराते रहे

अचानक मेरे पतिदेव ने मुझे झकझोरा
बोले, कब तक सोओगी , दोपहर होने को आई
मैंने इधर उधर देखा और कहा
अये हये ये क्या किया, सब बिगाड़  दिया
अच्छी भली बच्चन जी को कविताये सुना रही थी
अच्छा अब बैठो,बाकी  की कवितायेँ तुम सुनो
ये जल्दी से रसोई की ओर भागे
जाते जाते बोले,तुम्हारे लिए चाय बनाता हूँ
जल्दी से उठ आओ
मैं मन मसोस कर रह गयी , क्या करती
उठी और हाथ मुहँ धोने लगी



आप इसे मेरी आवाज में you tube पर भी सुन सकते है
'Amitabh Bachchan' - A poem by Sunita Katyal
https://www.youtube.com/watch?v=n8anrp8v3Kc

Monday, 29 July 2013

यादों के नासूर

उनकी यादों के नासूर को
हमने अपने दिल के कोने  में
जैसे रुई के फाहों के बीच
 मुलायमियत से छिपा रखा है
जो कभी सूखता नहीं
सिर्फ और सिर्फ दुखता है 

चुभन

दिल से दिल का तार कहीं जुड़ा था
उन्हें मेरे प्यार का आभास तो था
आज जब मैं उन्हें याद करती हूँ
 दिल में उनके भी चुभन तो होती होगी 

पानी ही जीवन है

पानी ही जीवन है,
पानी की हर इक बूँद कीमती है
सुना था बहुत,
पर कभी ध्यान न दिया था

कुछ दिन पूर्व मैं बेटे के साथ मुंबई गयी
सोचा था घर जा कर नहायेंगे
तरोताजा हो कर खाना बनायेंगे
घर पहुँच कर देखा,
टंकी में पानी की इक बूँद भी नहीं है
ये पता चला आज सुबह पानी नहीं आया
सोचा अब करें क्या
तभी बेटा २० लीटर पानी का जार
२०० रूपए में ले आया
बोला, माँ इससे काम चलाओ

इतना महंगा पानी
मैं ये कल्पना करने लगी
पानी की ऐसी कमी रही
तो अगली पीढ़ी पानी के लिए
 लड़ेगी और झगड़ेगी
मैं ये सोच कर सिहर गयी

तब मैंने ये संकल्प लिया
अब पानी व्यर्थ न बहने दूँगी
खुद भी पानी की बचत करूंगी
दूसरों को भी समझाऊँगी

पानी ही जीवन है,
पानी की हर इक बूँद कीमती है

Sunday, 28 July 2013

तनाव सिर्फ तनाव

किसी अपने को हॉस्पिटल में बिस्तर पर पड़ा देखकर, हो जाता  है
तनाव सिर्फ तनाव 
हॉस्पिटल में फैला होता है चारों ओर
तनाव सिर्फ तनाव 
भागते हुए डॉ., नर्सों और अटेंडेंटस के चेहरों पर होता है 
तनाव सिर्फ तनाव 
बीमार और तीमारदार के चेहरों पर होता है 
तनाव सिर्फ तनाव 
रोगी का क्या इलाज होना है,उसे क्या दवाई देनी है 
किस दिन क्या होगा, कौन,कौन सा डॉ विजिट करेगा
तनाव सिर्फ तनाव 
हॉस्पिटल में रात को कौन रुकेगा, दिन भर कौन रहेगा 
जरा जरा से काम पर अटेंडेंटस मांगते हैं टिप
कितनी देनी है, देनी है या नहीं देनी है 
तनाव सिर्फ तनाव 

पर कुछ केरल वासी नर्सों के चेहरों पर होती है केवल मुस्कराहट 
वो हमें देखकर मुस्कराती है, हम उन्हें देख मुस्कराते हैं 
उनकी मुस्कराहट और सेवा भावना से 
माहौल सोहार्दपूर्ण हो जाता है 
और फिर घट जाता है फैला हुआ तनाव 


Thursday, 25 July 2013

आदमी एक दमी

स्वर्गीय ज्ञानी संत मसकीन जी को समर्पित 


                         1

होनी तो हो कर रहे, अनहोनी न होय 
चिंता उसकी कीजिये, जो अनहोनी होय



                            2

भूत काल की यादें,
होती हैं कब्र की तरह 
और भविष्य की चिंताएँ,  
होती है चिता समान 
वर्तमान में जीना सीख ले बन्दे
तू बन जायेगा भगवान 



                            3

जानता  है तू, वर्तमान क्या है 
वर्तमान एक दम है जो अंदर गया,
जो दम बाहर चला गया, वो भूतकाल 
जो दम आएगा, वो भविष्य होगा 
इसलिए ऐ बन्दे मन को वर्तमान में 
टिका कर जीना सीख 



                              
                            

जिंदगी

गर जिंदगी की राह को
करना चाहते हो आसान
युवाओं से करो दोस्ती
और बुजुर्गों का सम्मान 

Tuesday, 23 July 2013

कभी हम दुखी ,कभी तुम दुखी

दुनिया अजब गजब सी है यारा
कभी हम दुखी ,कभी तुम दुखी

जब हम दोनों थे जवां
न हम दुखी , न तुम दुखी

जैसे ही अपनी उम्र बढ़ी
हम भी दुखी और तुम भी दुखी

कभी बूढ़े माँ बाप को देख कर दुखी
कभी बच्चों की सुन कर दुखी

कभी इस कारण से हुए  दुखी
कभी उस कारण से हुए  दुखी

मन को हमने बहुत समझाया
इसको बहुत प्रवचन सुनाया
फिर भी हुआ न ये सुखी

दुनिया अजब गजब सी है यारा
कभी हम दुखी ,कभी तुम दुखी

Monday, 22 July 2013

इक था बचपन

आज का बचपन भी क्या बचपन है
टी. वी और कंप्यूटर में
कुछ गुम सा हो गया है

इक था बचपन ,हमारा बचपन
प्यारा सा,भोला सा बचपन
इक था बचपन ,इक था बचपन


तब टीवी और फ्रिज न था
वहां कार न थी और ए. सी न था
 प्रकृति से हमारा नाता था
वहां आम भी थे और अमरुद भी थे
वहां खिन्नी भी थी और लीची भी थी
वहां बेर भी थे और बेल भी थे
वहां लोकाट और फालसे भी थे
करोंदों से लदा इक झाड़ भी था
झाड़ पर चढ़ी सेम की बेल भी थी
फलों और सब्जियों की रेलमपेल थी

वहां गाय भी थी और भैंस भी थी
वहां घी, ढूध, दही की बहार थी
वहां पिज़्ज़ा और बर्गर न था
फिर भी मजा ही मजा था

गर्मियों में टैंक में नहाते थे
आंधी आने पर जामुन और
 अमिया बीनने निकल जाते थे
वहां जब बौछार पड़ती थी
सोंधी सी बयार बहती थी

रात को आँगन में पानी छिड़क कर
हम चारपाईयों पर लेट जाते थे
तारे गिनते गिनते हम
न जाने कब सो जाते थे

हम खेलते भी थे और पढ़ते भी थे
हम लड़ते और झगड़ते भी थे

वो बचपन आज भी याद आता है
सपनों में यदा कदा दिख जाता है
ये था हमारा प्यारा सा बचपन
भोला और न्यारा सा बचपन

इक था बचपन ,इक था बचपन 

भक्ति

मुझे ज्ञान नहीं
प्रभु तेरी भक्ति चाहिए
मुझे कुछ और नहीं
केवल अनन्य भक्ति चाहिए

तेरी रजा में रहूँ राजी
मुझे ऐसी शक्ति चाहिए

प्रारब्ध में जो भी मिले
उसमें ही तृप्ति चाहिए

मुझे जीवन मरण से डर नहीं
इस जनम में ही मुक्ति चाहिए

मुझे ज्ञान नहीं
प्रभु तेरी भक्ति चाहिए
मुझे कुछ और नहीं
केवल अनन्य भक्ति चाहिए

Sunday, 21 July 2013

कल

क्यूँ  सोचती हूँ मैं
कल कैसे होगा , क्या होगा 

तन्हाइयों के आलम से 
मुझे खुद को उबारना होगा 

समुद्र की लहरों की तरह 
बुरे विचार ,जो बार बार आते हैं 
उन्हें दूर हटाना होगा
खुद को विश्वास दिलाना होगा 
 योग-क्षेम संभालता है जो सबका 
वो रब मेरे भी साथ होगा 

मुझे सोचना होगा कुछ इस तरह
कल जो  होगा सुनीता जी 
अच्छा  होगा, अच्छा ही होगा 

Saturday, 20 July 2013

उम्र पचपन की

 कल मैंने एक खबर पढ़ी
विदेश में एक 80 वर्षीय वृद्ध ने
25 वर्षीय महिला से शादी करी

मैंने जल्दी से अपनी उम्र गिनी
मेरे मियां 60 के हुए
तो मेरी उम्र पचपन की हुई
मैंने फटाफट अपने बाल रंगे
नए फैशन के कपड़े पहने

 फिर छोटे बेटे से पूछा
मुझ पर ये ड्रेस जंचेगी या नहीं जंचेगी
मुझे जीन्स टाप में देख कर
वो मुहँ छिपा कर हंसा
फिर जोर से खिलखिलाया
बोला  माँ ,जंचेगी पर कम जंचेगी

मैं सोच में पड़ गयी खड़ी खड़ी
देश और विदेश में फर्क बहुत है
हाय अभी मेरी उम्र ही क्या है

छोटे को हँसता देख कर
बड़े बेटे से कुछ भी पूछने की
 मेरी हिम्मत न पड़ी 

Thursday, 18 July 2013

हाय बुढ़ापा बाय बुढ़ापा

बचपन भी बीता ,जवानी भी बीती
अब बुढ़ापे का आगमन हो चुका है
हाय हाय बुढ़ापा ,हाय हाय बुढ़ापा 

आँखें भी रूठी,मोतिया-बिन्द के कारण
कान भी रूठे , ऊँचा सुनने लगे हैं
घुटने भी रूठे,आर्थराइटिस के कारण 
ब्लड प्रेशर और सुगर  के स्तर
अपनी मर्जी से चढ़ने ,उतरने  लगे हैं 
थाइरोइड ने वजन पहले से ही बढ़ाया है
डॉ कहता है वजन घटाओ 
बहनजी तुम कुछ कम खाओ 
हमने कहा ,सुबह और शाम 
डॉ साहेब एक एक रोटी खाते हैं 
वो बोला ,एक खाती हैं तो आधी खाओ 
खाओ या न खाओ ,पर वजन घटाओ 

हम कुढ़े पर फिर मुस्कराए 
डॉ खुद दुबला पतला ,गंजा ,मरिअल सा है 
हमारी सेहत देख कर जल भुन गया है 
बस ये सोच कर हम खुश हो गए 
रास्ते में ही हमने आइसक्रीम खायी 
आइसक्रीम ,मगर शुगर फ्री थी 

घर आकर खुद को हिम्मत दिलाई 
हिम्मत कर सुनीता तू हिम्मत कर 
जैसे बचपन बीता और बीती जवानी 
वैसे ही एक दिन बुढ़ापा भी बीतेगा 
तब तू मुस्कराना और कहना 
बाय बाय बुढ़ापा ,बाय बाय बुढ़ापा 

Tuesday, 16 July 2013

चांदनी

रात मैंने चाँद देखा
साथ में चांदनी भी थी
चांदनी ऐसी खिली खिली थी
जैसे आज सजना से मिली थी

उन्हें देख रात की रानी भी  खिल गयी
हरसिंगार भी महकने लगा
हवा मंद मंद बहने लगी
मैं भी कुछ शरमाई सकुचाई सी
हाथ पकड़ कर सजना का
बोल नहीं कुछ पाई थी
हौले से बदल करवट
मुस्कराते हुए
न मालूम कब सो गयी थी 

Saturday, 13 July 2013

मन की शांति

ना किसी को समझाना है 
ना किसी को बदलना है 
विचारों से विचारों को समझाकर 
मन को शांत करना है 

Wednesday, 10 July 2013

प्रभु का शुकराना

सूरज के निकलने में
फूलों के खिलने में
चिड़ियों के चहकने में
हरसिंगार के महकने में
स्वांसों के चलने में
शाम के ढलने में
काली घटा छाने में
मौसम सुहाने में
चाँद के निकलने में
साजन से मिलने में
रात को सोने में
सुबह को जगाने में

प्रभु का शुकराना है
कोटि कोटि शुकराना है

"भाई रे मत तुम जानो
और किसी के कुछ हाथ है "     

Monday, 8 July 2013

चाहत

         हमे चाहत उस रब से लगानी है क्योंकि

Sunday, 7 July 2013

प्रभु


                                           एक 

प्रभु तू क्या चाहता है
कुछ समझ न आता है

राजा को रंक बनाता है
और रंक को राजा बनाता है
प्रभु कैसा ये खेल रचाता है
कुछ समझ न आता है

कभी सुनामी लाता है 
कभी भूकंप मचाता है 
हर ओर हाहाकार मच जाता है 
कुछ समझ न आता है 

                                                दो 
                                      
प्रभु ऐसी परीक्षा न लिया करो 
हम बच्चे तेरे नादान हैं 
इक तुम्ही हमारा सहारा हो 
तुम्ही विश्वास हमारा हो 
हम पर दया किया करो 
प्रभु ऐसी परीक्षा न लिया करो 



पुरवैया

यादों ने दुखी किया रे ,
दिल हर समय उन्हें ही चाहे
ऐ पुरवैया ढून्ढ के लाओ
न जाने वो कहाँ रे .

Saturday, 6 July 2013

यारा

तुमने क्या सोचा तुम्हारे जाने के बाद
 हम बिखर जायेंगे
यारा हममें इतना हुनर है कि
बिखर के भी संभल जायेंगे 

सीखना

जीवन की परेशानियों से वो ही लड़ पाता है
जिसको खुद से लड़ना आता है
चिड़िया का बच्चा खुद उड़ना सीख जाता है
उसे कोई नहीं सिखाता है
गिर के जो खुद उठ जाता है
उसे संभलना आ जाता है 

Thursday, 4 July 2013

बेअन्त

संत मसकीन जी को श्रद्धांजलि स्वरुप समर्पित 
जो कि कई वर्ष पूर्व बेअन्त में समां चुके है। 



कभी कभी मैं सोचती थी
मैं कौन हूँ ,मैं कहाँ से आई
और कहाँ को जाना है ,

अब इस उम्र में पता चला
जीवन का एक लक्ष्य बनाना है
मुझे बेअन्त  में समाना है
मुझे बेअन्त  में समाना है ,

स्वांस स्वांस अनमोल है
नर तन का बड़ा मोल है
समय व्यर्थ न गंवाना है
मुझे बेअन्त  में समाना है

जीवन की सांझ है आ चुकी 
आगे दिख रहा अंत है 
मुझे अंत के आगे जाना है 
मुझे बेअन्त  में समाना है

जहाँ नित्य नवीन आनंद है 
जहाँ आनंद ही आनंद है 
मुझे आनंद में समाना है 
मुझे आनंद में समाना है .

Wednesday, 3 July 2013

रात की रानी

सर्दी के मौसम में ,रात ढले
जब रात की रानी  महकती थी

मैं वो ही गीत गुनगुनाती थी
जिसको सुन,तुम रुक जाते थे
हौले से मेरे कंधों पर दोनों हाथों से
शाल ओड़ाते थे
संग संग मेरे तुम भी प्रिये
 फिर वो ही गीत गाते थे

टहलते टहलते सर्द हवा में
हम सुध बुध जैसे खो जाते थे .

Tuesday, 2 July 2013

जीवन एक युद्ध-भूमि

Meet everybody and every circumstance on the battlefield of
life with the courage of a hero and the smile of a conqueror.
               SRI SRI PARAMAHANSA YOGANANDA


जीवन एक युद्ध-भूमि है
मुस्करा कर साहस से
विजेता की तरह युद्ध खेल तू

गम आये तो झेल तू
परिस्थितियों को हटा परे
सबसे कर ले मेल तू

जीवन एक युद्ध-भूमि है
मुस्करा कर साहस से
विजेता की तरह युद्ध खेल तू