क्यूँ सोचती हूँ मैं
कल कैसे होगा , क्या होगा
तन्हाइयों के आलम से
मुझे खुद को उबारना होगा
समुद्र की लहरों की तरह
बुरे विचार ,जो बार बार आते हैं
उन्हें दूर हटाना होगा
खुद को विश्वास दिलाना होगा
योग-क्षेम संभालता है जो सबका
वो रब मेरे भी साथ होगा
मुझे सोचना होगा कुछ इस तरह
कल जो होगा सुनीता जी
कल जो होगा सुनीता जी
अच्छा होगा, अच्छा ही होगा
strong. lovely. hopeful. excellent. great poetry.
ReplyDeleteVery nice mummyji ... just keep on thinking positively. . Theb sab accha hee hoga for sure..
ReplyDeleteI can imagine so many moms loving it.
ReplyDeleteI just realized this is the 61st poem on the blog! Great going mom. This is such a great collection.
ReplyDeleteAnkita has rightly said that so many moms would take it as their own plight.
ReplyDelete