सर्दी के मौसम में ,रात ढले
जब रात की रानी महकती थी
मैं वो ही गीत गुनगुनाती थी
जिसको सुन,तुम रुक जाते थे
हौले से मेरे कंधों पर दोनों हाथों से
शाल ओड़ाते थे
संग संग मेरे तुम भी प्रिये
फिर वो ही गीत गाते थे
टहलते टहलते सर्द हवा में
हम सुध बुध जैसे खो जाते थे .
जब रात की रानी महकती थी
मैं वो ही गीत गुनगुनाती थी
जिसको सुन,तुम रुक जाते थे
हौले से मेरे कंधों पर दोनों हाथों से
शाल ओड़ाते थे
संग संग मेरे तुम भी प्रिये
फिर वो ही गीत गाते थे
टहलते टहलते सर्द हवा में
हम सुध बुध जैसे खो जाते थे .
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