डबडबाई आँखों से, लिखी जो तुम्हे पाती
खुद ही बार बार पढ़ कर, आंसुओं से भिगो दी
भेजती कहाँ ,कुछ अता पता न था तुम्हारा मालूम
संभालती तो दुनिया को क्या बताती
किसको लिखी , क्यों लिखी ये पाती
होती बदनामी गर, तुम बिन कैसे सह पाती
खुद ही बार बार पढ़ कर, आंसुओं से भिगो दी
भेजती कहाँ ,कुछ अता पता न था तुम्हारा मालूम
संभालती तो दुनिया को क्या बताती
किसको लिखी , क्यों लिखी ये पाती
होती बदनामी गर, तुम बिन कैसे सह पाती
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