घर के पिछवाड़े के आँगन में
एक पीपल का बड़ा पेड़ था
चैत की पूर्णिमा थी
चारों ओर चांदनी खिली थी
मै रात को टहल रही थी
मेरी नजर पीपल पर पड़ी
पीपल नए लाली लिए
हरे कोमल पत्तों से सजा था
मंद हवा बह रही थी
बहुत सुंदर नजारा था
ऐसा लग रहा था जैसे
पेड़ ने ओढनी ओढ़ रखी है
उस ओढ़नी में लाली लिए
हरे सितारे रुपहली चांदनी में
जैसे झिलमिला रहे हैं
मैं मुग्ध नयनों से
देखती वहीँ बैठ गयी
देखते देखते मेरी आँख लग गयी
मैं जान ही न पाई
कब रात ढल गयी
एक पीपल का बड़ा पेड़ था
चैत की पूर्णिमा थी
चारों ओर चांदनी खिली थी
मै रात को टहल रही थी
मेरी नजर पीपल पर पड़ी
पीपल नए लाली लिए
हरे कोमल पत्तों से सजा था
मंद हवा बह रही थी
बहुत सुंदर नजारा था
ऐसा लग रहा था जैसे
पेड़ ने ओढनी ओढ़ रखी है
उस ओढ़नी में लाली लिए
हरे सितारे रुपहली चांदनी में
जैसे झिलमिला रहे हैं
मैं मुग्ध नयनों से
देखती वहीँ बैठ गयी
देखते देखते मेरी आँख लग गयी
मैं जान ही न पाई
कब रात ढल गयी
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