Tuesday, 27 August 2013

अपना कोई

जब अपना कोई खोता है
कितना भी मुस्कराते हुए
दिखने  की कोशिश करो
आंखे भर भर जाती हैं
दिल जार जार रोता है 

Thursday, 22 August 2013

मेरे डैडी जी

मेरे डैडी जी बहुत मेहनती हैं
वो काम के पूरे धती हैं
77 की उम्र में वो सुबह
9 बजे ऑफिस को जाते हैं
शाम को 8 बजे घर आते हैं
वो जब बहुत थक जाते हैं
खुद को कुछ इस तरह समझाते हैं
"उठ मनोहर लाल, तेरा कोई नहीं हाल
उठ मन रे उठ काम कर "
और फिर काम में जुट जाते हैं

जब मैं भी थक जाती हूँ
 अपने मन को ऐसे ही समझाती हूँ
"उठ सुनीता कत्याल, तेरा कोई नहीं हाल
उठ मन रे उठ काम कर "

सदा काम करना ,कभी रुकना नहीं
काम में जुटने की ये विशिष्ट प्रथा
अगली पीढ़ी को भी सिखाती हूँ

Wednesday, 14 August 2013

कुछ ताना और कुछ बाना

जवानी में इक दिन
 दिमाग में आया इक फितूर
गर मिल जाये मुझे कोहिनूर
तो कभी कभी अमजद अली खान को
सामने बिठा कर सुना करूं  संतूर
और फिर देखूं इक फिल्म मशहूर
शाहरुख़ खान को घर बुलाकर
खिलाऊँ सेब और अंगूर

दोस्तों  उम्र के ढलते ही
गुम हो गया ये फितूर
अब लगता है चली जाऊं
दुनिया से कहीं दूर
जहाँ हर शै में दिखे
मुझे रब का नूर
हर समय रब के नाम
का प्याला पिया करूं
और रहूँ रब्बी नशे में चूर

ऐसे जिंदगी को करूँ सफल भरपूर 

Tuesday, 13 August 2013

दुनिया है इक मेला

दुनिया है इक मेला
ये बहुत बड़ा झमेला
यहाँ हर कोई अकेला

यहाँ आना भी अकेला
सबको जाना भी अकेला

यहाँ तेरा भी इक रेला
यहाँ मेरा भी इक रेला
इस तेरे मेरे में
यहाँ हर कोई अकेला
ये बहुत बड़ा झमेला 

Sunday, 11 August 2013

इश्क

गर हमने इश्क किया होता
कुछ किस्से विस्से सुनाते
पर क्या करें यारां
नजरों के पहरे,
 थे गहरे गहरे
ना इश्क ही किया
ना इश्क मुआ हुआ
जवानी ऐसे ही बीत गयी
 यारा ऐसे ही बीत गयी

सजना

दिल पे पड़े तेरी यादों के निशां
चाहूँ  छुपाना, इसे कैसे छुपाऊँ 
समझ न आये, इसे कैसे मिटाऊँ
सजना,सजना 

सावन का महीना

सावन का महीना,
चले पुरवाई
संग लाये बदरा,
 तेरी याद आई
अंखिया मेरी,
भर भर आई
तभी पड़ी बौछारें,

सब ने समझा,
 मैं भीग के आई

Saturday, 10 August 2013

अब सुबह हुई

बचपन में सुबह सवेरे
मैं आराम से सोती थी
खिड़की से सूरज की किरणें
हौले से आकर गुनगुनाती थी
 सुबह हुई अब  सुबह हुई
मैं अलसाई सी सोती रहती
तभी आँगन में चिड़िया चहचहाती थी
 सुबह हुई अब  सुबह हुई
तब माँ आकर मेरे बाल सहलाती थी
जागो बेटी, अब सुबह हुई

अब मैं  हुई बड़ी बूढी
 ए.सी. लगाकर बंद कमरे में सोती हूँ
न सूरज की किरणें जगाती हैं
न चिड़िया वहां चहचहाती  है
मोबाइल अलार्म बजाता है
पतिदेव आकर जगाते हैं
गुडमोर्निंग श्रीमति जी
जागो, अब सुबह हुई

कल बहु रानी आएगी
वो पैर छूकर मुझे जगाएगी
पैरीपौना मम्मी जी, लीजिये
चाय पीजिये, अब सुबह हुई
मैं उसे ढेरों आशीष दूँगी
और कहूँगी ,हाँ हाँ बेटी
 अब सुबह हुई


Friday, 9 August 2013

भारतवासी

 हम सब भारतवासी हैं 
हम सर्वधर्म अपनाते हैं 
हम सब त्यौहार मनाते हैं 

हम ईद पर सेविंयाँ खाते हैं 
दिवाली पर पटाखे छुड़ाते हैं 
होली पर गुलाल उड़ाते हैं 
गुरपुरब पर गुरु का लंगर खाते हैं 
क्रिसमस पर चर्च जाते हैं 

 हम सब भारतवासी हैं 
हम सर्वधर्म अपनाते हैं 
हम सब त्यौहार मनाते हैं 

माँ

माँ
माँ एक अतिसुंदर शब्द है, इसकी सुन्दरता
माँ बन कर ही अनुभव होती है
स्त्री बेटी, बहिन और पत्नी होने के साथ साथ
कई अन्य रिश्तों की
 भावनाओं से भी ओतप्रोत होती है
पर वो संपूर्ण माँ बन कर ही होती है
माँ बन कर ही उसके अंदर की
 ममता स्फुटित होती है
बच्चा जब माँ माँ बुलाता है
माँ भीतर तक गदगद होती है

माँ एक अतिसुंदर शब्द है, इसकी सुन्दरता
माँ बन कर ही अनुभव होती है

Sunday, 4 August 2013

मन रे

मन रे ,  मन रे
खुद में हो जा मगन
व्यापक हो जा जैसे गगन
मन रे, मन रे

सबको खुद निर्णय लेने दे

किसी को रोक ना
किसी को टोक ना
तू कुछ बोल ना
किसी को तोल ना

मन रे ,  मन रे
खुद में हो जा मगन
व्यापक हो जा जैसे गगन
मन रे, मन रे 

Saturday, 3 August 2013

पतिदेव

फुर्सत के किन्ही लम्हों में
हम पतिदेव के साथ बैठे थे
उन्हें मूड में देखकर हम बोले
अपनी कवितायेँ सुनाये क्या?

ये सुन उनका  चेहरा उतर गया
हम कुछ जोर से बोले
पत्नी को प्रोत्साहन नहीं दे सकते
4 कवितायेँ लिखी हैं छोटी छोटी
लेकिन सुनायेंगे सिर्फ दो
ये धीरे से बड़बड़ाये ,अच्छा सुनाओ

हम कवितायेँ सुनाने लगे
पर इनके भाव विहीन चेहरे को
 देखकर हम समझ गए
ये अच्छे पति की तरह
 सर तो हिला  रहे हैं
पर एक कान से सुनकर कविता
दुसरे कान से बाहर उड़ा रहे हैं

तुम्हारी यादें

सागर किनारे मैं बैठी
आती जाती लहरों को देख रही
कुछ लहरें दूर से ही चली जातीं
कुछ पास आकर मुझे भिगो जातीं

ऐसे ही प्रिय तुम्हारी यादें
कभी दूर से ही निकल जातीं
कभी पास आकर मुझे रुला जातीं 

माँ मेरी माँ ही नहीं


माँ मेरी माँ ही नहीं
वो गुरु भी है और सखी भी

मैं अपनी माँ की लाडली हूँ
मैं नाजों से पली बढ़ी हूँ

माँ हर पग पर मुझे संभालती है
दुःख में ढाल  बन जाती है
सुख में उत्साह बढाती है
जीवन के हर पहलु को
प्यार से समझाती है
गलती करने पर डांटती  है
सांसारिक बातो के साथ साथ
वो अध्यात्मिक द्रिस्टान्त  भी सुनाती है
इसलिए मैं कहती हूँ

माँ मेरी माँ ही नहीं
वो गुरु भी है और सखी भी