मेरे डैडी जी बहुत मेहनती हैं
वो काम के पूरे धती हैं
77 की उम्र में वो सुबह
9 बजे ऑफिस को जाते हैं
शाम को 8 बजे घर आते हैं
वो जब बहुत थक जाते हैं
खुद को कुछ इस तरह समझाते हैं
"उठ मनोहर लाल, तेरा कोई नहीं हाल
उठ मन रे उठ काम कर "
और फिर काम में जुट जाते हैं
जब मैं भी थक जाती हूँ
अपने मन को ऐसे ही समझाती हूँ
"उठ सुनीता कत्याल, तेरा कोई नहीं हाल
उठ मन रे उठ काम कर "
सदा काम करना ,कभी रुकना नहीं
काम में जुटने की ये विशिष्ट प्रथा
अगली पीढ़ी को भी सिखाती हूँ
जवानी में इक दिन
दिमाग में आया इक फितूर
गर मिल जाये मुझे कोहिनूर
तो कभी कभी अमजद अली खान को
सामने बिठा कर सुना करूं संतूर
और फिर देखूं इक फिल्म मशहूर
शाहरुख़ खान को घर बुलाकर
खिलाऊँ सेब और अंगूर
दोस्तों उम्र के ढलते ही
गुम हो गया ये फितूर
अब लगता है चली जाऊं
दुनिया से कहीं दूर
जहाँ हर शै में दिखे
मुझे रब का नूर
हर समय रब के नाम
का प्याला पिया करूं
और रहूँ रब्बी नशे में चूर
गर हमने इश्क किया होता
कुछ किस्से विस्से सुनाते
पर क्या करें यारां
नजरों के पहरे,
थे गहरे गहरे
ना इश्क ही किया
ना इश्क मुआ हुआ
जवानी ऐसे ही बीत गयी
यारा ऐसे ही बीत गयी
बचपन में सुबह सवेरे
मैं आराम से सोती थी
खिड़की से सूरज की किरणें
हौले से आकर गुनगुनाती थी
सुबह हुई अब सुबह हुई
मैं अलसाई सी सोती रहती
तभी आँगन में चिड़िया चहचहाती थी
सुबह हुई अब सुबह हुई
तब माँ आकर मेरे बाल सहलाती थी
जागो बेटी, अब सुबह हुई
अब मैं हुई बड़ी बूढी
ए.सी. लगाकर बंद कमरे में सोती हूँ
न सूरज की किरणें जगाती हैं
न चिड़िया वहां चहचहाती है
मोबाइल अलार्म बजाता है
पतिदेव आकर जगाते हैं
गुडमोर्निंग श्रीमति जी
जागो, अब सुबह हुई
कल बहु रानी आएगी
वो पैर छूकर मुझे जगाएगी
पैरीपौना मम्मी जी, लीजिये
चाय पीजिये, अब सुबह हुई
मैं उसे ढेरों आशीष दूँगी
और कहूँगी ,हाँ हाँ बेटी
अब सुबह हुई
माँ
माँ एक अतिसुंदर शब्द है, इसकी सुन्दरता माँ बन कर ही अनुभव होती है
स्त्री बेटी, बहिन और पत्नी होने के साथ साथ
कई अन्य रिश्तों की
भावनाओं से भी ओतप्रोत होती है
पर वो संपूर्ण माँ बन कर ही होती है
माँ बन कर ही उसके अंदर की
ममता स्फुटित होती है
बच्चा जब माँ माँ बुलाता है
माँ भीतर तक गदगद होती है
माँ एक अतिसुंदर शब्द है, इसकी सुन्दरता
माँ बन कर ही अनुभव होती है
फुर्सत के किन्ही लम्हों में
हम पतिदेव के साथ बैठे थे
उन्हें मूड में देखकर हम बोले
अपनी कवितायेँ सुनाये क्या?
ये सुन उनका चेहरा उतर गया
हम कुछ जोर से बोले
पत्नी को प्रोत्साहन नहीं दे सकते
4 कवितायेँ लिखी हैं छोटी छोटी
लेकिन सुनायेंगे सिर्फ दो
ये धीरे से बड़बड़ाये ,अच्छा सुनाओ
हम कवितायेँ सुनाने लगे
पर इनके भाव विहीन चेहरे को
देखकर हम समझ गए
ये अच्छे पति की तरह
सर तो हिला रहे हैं
पर एक कान से सुनकर कविता
दुसरे कान से बाहर उड़ा रहे हैं
मैं अपनी माँ की लाडली हूँ
मैं नाजों से पली बढ़ी हूँ
माँ हर पग पर मुझे संभालती है
दुःख में ढाल बन जाती है
सुख में उत्साह बढाती है
जीवन के हर पहलु को
प्यार से समझाती है
गलती करने पर डांटती है सांसारिक बातो के साथ साथ
वो अध्यात्मिक द्रिस्टान्त भी सुनाती है
इसलिए मैं कहती हूँ