Saturday, 10 August 2013

अब सुबह हुई

बचपन में सुबह सवेरे
मैं आराम से सोती थी
खिड़की से सूरज की किरणें
हौले से आकर गुनगुनाती थी
 सुबह हुई अब  सुबह हुई
मैं अलसाई सी सोती रहती
तभी आँगन में चिड़िया चहचहाती थी
 सुबह हुई अब  सुबह हुई
तब माँ आकर मेरे बाल सहलाती थी
जागो बेटी, अब सुबह हुई

अब मैं  हुई बड़ी बूढी
 ए.सी. लगाकर बंद कमरे में सोती हूँ
न सूरज की किरणें जगाती हैं
न चिड़िया वहां चहचहाती  है
मोबाइल अलार्म बजाता है
पतिदेव आकर जगाते हैं
गुडमोर्निंग श्रीमति जी
जागो, अब सुबह हुई

कल बहु रानी आएगी
वो पैर छूकर मुझे जगाएगी
पैरीपौना मम्मी जी, लीजिये
चाय पीजिये, अब सुबह हुई
मैं उसे ढेरों आशीष दूँगी
और कहूँगी ,हाँ हाँ बेटी
 अब सुबह हुई


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