मेरे डैडी जी बहुत मेहनती हैं
वो काम के पूरे धती हैं
77 की उम्र में वो सुबह
9 बजे ऑफिस को जाते हैं
शाम को 8 बजे घर आते हैं
वो जब बहुत थक जाते हैं
खुद को कुछ इस तरह समझाते हैं
"उठ मनोहर लाल, तेरा कोई नहीं हाल
उठ मन रे उठ काम कर "
और फिर काम में जुट जाते हैं
जब मैं भी थक जाती हूँ
अपने मन को ऐसे ही समझाती हूँ
"उठ सुनीता कत्याल, तेरा कोई नहीं हाल
उठ मन रे उठ काम कर "
सदा काम करना ,कभी रुकना नहीं
काम में जुटने की ये विशिष्ट प्रथा
अगली पीढ़ी को भी सिखाती हूँ
वो काम के पूरे धती हैं
77 की उम्र में वो सुबह
9 बजे ऑफिस को जाते हैं
शाम को 8 बजे घर आते हैं
वो जब बहुत थक जाते हैं
खुद को कुछ इस तरह समझाते हैं
"उठ मनोहर लाल, तेरा कोई नहीं हाल
उठ मन रे उठ काम कर "
और फिर काम में जुट जाते हैं
जब मैं भी थक जाती हूँ
अपने मन को ऐसे ही समझाती हूँ
"उठ सुनीता कत्याल, तेरा कोई नहीं हाल
उठ मन रे उठ काम कर "
सदा काम करना ,कभी रुकना नहीं
काम में जुटने की ये विशिष्ट प्रथा
अगली पीढ़ी को भी सिखाती हूँ
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