फुर्सत के किन्ही लम्हों में
हम पतिदेव के साथ बैठे थे
उन्हें मूड में देखकर हम बोले
अपनी कवितायेँ सुनाये क्या?
ये सुन उनका चेहरा उतर गया
हम कुछ जोर से बोले
पत्नी को प्रोत्साहन नहीं दे सकते
4 कवितायेँ लिखी हैं छोटी छोटी
लेकिन सुनायेंगे सिर्फ दो
ये धीरे से बड़बड़ाये ,अच्छा सुनाओ
हम कवितायेँ सुनाने लगे
पर इनके भाव विहीन चेहरे को
देखकर हम समझ गए
ये अच्छे पति की तरह
सर तो हिला रहे हैं
पर एक कान से सुनकर कविता
दुसरे कान से बाहर उड़ा रहे हैं
हम पतिदेव के साथ बैठे थे
उन्हें मूड में देखकर हम बोले
अपनी कवितायेँ सुनाये क्या?
ये सुन उनका चेहरा उतर गया
हम कुछ जोर से बोले
पत्नी को प्रोत्साहन नहीं दे सकते
4 कवितायेँ लिखी हैं छोटी छोटी
लेकिन सुनायेंगे सिर्फ दो
ये धीरे से बड़बड़ाये ,अच्छा सुनाओ
हम कवितायेँ सुनाने लगे
पर इनके भाव विहीन चेहरे को
देखकर हम समझ गए
ये अच्छे पति की तरह
सर तो हिला रहे हैं
पर एक कान से सुनकर कविता
दुसरे कान से बाहर उड़ा रहे हैं
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