शादी के इन ३२-३३ वर्षों में
हम पति पत्नी का रिश्ता
कुछ अजब गजब सा हो गया है
२-३ घंटे साथ बैठते है
तो हो जाती है लड़ाई
गर २-३ घंटो के लिए जुदा होते हैं
तो सही नहीं जाती तन्हाई …।
पिछले दिनों जब मै गयी थी मुंबई
मौसम हुआ आशिकाना
झूम के चली हवा
जोर से बरसा पानी
ऊपर फ्लैट से मैंने नीचे देखा
बच्चे और बड़े पानी में भीग रहे थे
मैं भी झट नीचे गयी
कई हाथों ने मुझे पकड़ लिया
किसी ने कहा, दादी गर फिसल गयी
तो मच जाएगा यहाँ कोहराम
किसी दूसरे ने कहा
दादी ज्यादा भीग गयी
तो हो जाएगा सर्दी और जुखाम
मैंने कहा , न न ऐसा कुछ भी न होगा
मुझे भीगना अच्छा लगता है
जवानी में मैं खूब भीगती थी
इक प्यारी सी बच्ची बोली
दादी तुम्हारी जवाँमर्दी को सलाम
तभी पीछे से किसी कमबख्त ने कहा
हाय हाय बूढी घोड़ी लाल लगाम
साँझ ढले अकेले में
मैं बैठी शून्य में ताक रही
बीते हुए बरसों की गर्त से
आया एक मीठा सा अहसास
उनके साथ बिताये थे
जो कुछ दिन खास
तभी न जाने कहाँ से
एक बादल आया
और हल्की बूंदे पड़ने लगी
मैंने देखा इधर उधर
कोई न था आस पास
बची थी सिर्फ मैं और मेरी तन्हाई
तेरे मेरे दर्मियान
इक उम्र का फासला हुआ
मैं तो हूँ वहीँ ,थी जहाँ
तू है न जाने कहाँ
ख्वाबों ख्यालों में जब
आता है तू नजर
तेरे ख्याल और मेरे सवाल
बन जाते हैं जैसे इक जाँ
भावना शून्य हो गया है मानस पटल
बढ़ती उम्र के साथ जीवन जैसे जा रहा बदल
अपेक्षाएँ बढ़ गयी दूसरों से
अभिरुचियाँ सब हो गयीं जैसे ख़त्म
सूना सूना सा होता जा रहा जीवन सकल
मिठाई खा नहीं सकती
डाईबिटीज जो है
नमकीन पचा नहीं सकती
हाई बी. पी. की है शिकायत
शरीर थोड़ा भारी है
थाइरॉइड की बीमारी है
आँखों पर है चश्मा
एक आँख नयी बनवायी है
अब दूसरी आँख की बारी है
आर्थराइटिस की वजह से
चाल है थोड़ी टेढ़ी
घुटनों के नखरे जारी हैं
यारों फिर भी
हूँ पतिदेव कि प्रियतमा प्यारी
मम्मी डैडी की हूँ राजदुलारी
भाइयों कि हूँ बहना न्यारी
बच्चों कि हूँ मॉम प्यारी
भाड़ में जाएँ बीमारी
मै क्यों होऊं दुखियारी
जब सब अपनों को हूँ मैं प्यारी
ये दर्दें,ये तन्हाई
मेरे हिस्से में आई
गर पतिदेव का साथ न होता
जिंदगी हो जाती रुसवाई
अब आप पूछेंगे
पतिदेव का साथ और तन्हाई
ये बात समझ में न आई
सुनिये मेरे पतिदेव सेवा तो करते हैं
पर हर समय दूसरे कमरे में, टी.वी.में
अरविन्द केजरीवाल को देखा करते हैं
कब ख़त्म होंगी हाड़ कंपाती ये सर्द रातें
अवसाद भरी लम्बी काली जर्द रातें
मुझे नहीं भाती ये ठिठुराती रातें
कुछ धूप निकले, कुछ ठण्ड कम हो जाए
दिल में हो फागुनी हुलारे,बहे फागुनी बयारें
दिन हो उल्लसित , हो मस्त रातें
आया बसंत बहार सखी री
आया बसंत बहार
पतझड़ बीता, नव पल्लव आये
धरती ने कीना फूलों से श्रृंगार सखी री
आया बसंत बहार
गेहूँ की बालियों और आम की बौर से
सौंधी हुई री बयार सखी री
आया बसंत बहार
प्रकृति ने कीनी फागुन की अगुआई
तू भी हो जा तैयार सखी री
आया बसंत बहार
सर्द रातें, हलकी बूंदा बांदी और चले
जब नश्तर चुभोती बर्फीली हवाएं
कुछ लोग जो गठरी बने सोते हैं फुटपाथों पे
उनके दिलों से निकलती होगी चीत्कार हाय
ऐसे में कहो कैसे गणतंत्र दिवस की ख़ुशी मनायें
बस इतनी किरपा करना
प्रभु मेरा हाथ थामे रखना
मैं गिरने न पाऊँ कभी
तुम मुझे सम्भाले रखना
हरदम मेरे अंग संग रहना
मैं भटकने न पाऊँ कभी
चरणों में समेटे रखना
बस इतनी किरपा करना