Monday, 5 September 2016

तुम न जाने किस जहाँ में खो गए, हम भरी दुनिया में तनहा हो गए

सुने जो बोल इक पुराने गीत के
 वो कहानी बयां हमारी कर गए
धड़कनें दिल की ऐसी बढ़ गयी
जैसे दिल सीने से बाहर हो हमारे
बंद हो गयी जुबां कुछ ऐसे
दरवाजे सिसकियों के खुलते गए

Saturday, 13 August 2016

कह भी दो यारों

जो  मन में तुम्हारे है
कह भी  दो  यारों
हम तो हमेशा से बुरे थे
"अब थोड़े और सही "

Thursday, 14 July 2016

बंदिशें,बंदिशें, बंदिशें

बंदिशें,बंदिशें, बंदिशें
इन  बंदिशों ने उजाड़ दी,
 मेरी सारी  ख्वाइशें

बंदिशों में  बचपन भी  बीता और जवानी भी
कुछ जरूरी, कुछ गैर जरूरी बंदिशें
कुछ कही और  कुछ अनकही बंदिशें

अब इस उम्र में सीखा था
खुल कर हंसना, मुस्कराना
गाना और गुनगुनाना

न जाने कहाँ से उग आई
कुकुरमुत्तो  की  तरह,  फिर से वोही
बंदिशें,बंदिशें, बंदिशें 

Saturday, 9 July 2016

सागर किनारे दूर जो देखा

सागर किनारे दूर जो देखा
सांझ का सूरज लालिमा समेटे
सागर से मिलने को था जा रहा
गजब था नजारा
घड़ी दो घड़ी का मिलन था वो प्यारा
सूरज को सागर में देख समाते
अँधेरा लगा अपने पंख फैलाने
आती जाती लहरें टकरा रही थीं
अचानक से इक बड़ी लहर ने जो भिगोया मुझे
वापिस मैं चल दी हौले हौले
 जैसे हो कोई  दीवाना
मन में समेटे हुए
सागर, सूरज का मिलन वो सुहाना


Sunday, 3 July 2016

छुट्टियां

रोटी सेंकते हुए आवाज लगाने को होती हूँ
आओ बेटा, हमारे साथ खाना खा लो
याद आता है तभी, वो तो चला गया है
रात सोते में, जैसे आवाज देने को होती हूँ
याद आता है तभी, साथ वाला कमरा खाली है
पलकें नम हो जाती हैं
दवाई खाने के बाद भी, नींद नहीं आती है
जागते हुए ही, फिर सुबोह हो जाती है
 बच्चों के साथ दिन रात, हवा से उड़ जाते हैं
आँखों के आंसू अगली छुट्टियों का,इंतजार कराते हैं


Friday, 1 July 2016

तस्वीर

देख कर तस्वीर अपनी पुरानी
हम खुद पे फ़िदा हो गए
बेवफा वक़्त के साथ चलते चलते
हाय रे ,हम क्या थे ,क्या हो गए

Thursday, 23 June 2016

मुम्बई

काले काले बादलों का उमड़ घुमड़ कर आना
तेज चलती हवाओं से , जुल्फों का उड़ उड़ जाना
हमको तो भा गया यारों,मुंबई का ये मौसम
बस लगा रहे ऐसे ही यहाँ, यूं आना जाना 

Friday, 17 June 2016

धुआँ

मेरी जिंदगी में
 बहुत कुछ हुआ
तेरी याद आई
सब धुआँ हुआ

Thursday, 26 May 2016

रिश्ता तेरा मेरा

माना अंतरंग नहीं थे हम दोनों
अलौकिक था रिश्ता तेरा मेरा
अदृश्य रूप में आज भी है जिन्दा वो बंधन
 यादें  करती है  जिसपे बसेरा 

Wednesday, 18 May 2016

नाजुक कमर

रीढ़ की हड्डियां मेरी भुर भुराने लगी हैं (degeneration of spine )
वो एक के ऊपर एक आने लगी हैं
एक दूजे से टकराने लगी हैं
हड्डियां गुस्ताख हो गयी हैं इतनी
 आती जाती नसों को दबाने लगी हैं
इससे अंग प्रत्यंग हिल गया है मेरा
नाजुक कमर भी चरमराने लगी है 


Tuesday, 17 May 2016

गर्मी

अमलतास के फूलों की लड़ियाँ
गुलमोहर के फूलों की लालिमा
गर्मी की तप्ती दोपहरी में भी
बना  देती है खूबसूरत समां




Friday, 13 May 2016

चिड़िया

कभी कभी मन करता है
मैं हलकी फुलकी बन जाऊँ
दोनों हाथो को पंखो की मानिंद फैलाकर
इक चिड़िया सी अनन्त आकाश में उड़ जाऊँ
कभी इधर घूमूँ ,कभी उधर घूमूं
बादलों के भी आर पार आऊँ जाऊँ
ऐसे ही, उस अपरम्पार की सारी  सृष्टि देख आऊँ
ऐसे ही,उस रचनाकार की रचना  में मंडराऊँ

Tuesday, 10 May 2016

खबर है सबको

 खबर है सबको
कूच करना है दुनिया से इक रोज
फिर अभी  से ही क्यों  मनहूसियत फैलाए
जब जाना होगा ,चले जाएंगे यारों
आओ अभी तो खुशियों की शमा जलाएं 

Sunday, 17 April 2016

गम

इन दिनों उखड़ा उखड़ा सा है मन
घिरे हैं दुनिया की उलझनों से ऐसे 
दिख रहा है चारों और गम ही गम
उनसे जो की थी उम्मीदें वफ़ा
वो हो गये हमसे न जाने क्युँ खफा
सुन लेते हैं वो दुनिया में सबकी
हम कुछ  भी कहना चाहें
तो कर देते हैं हमें दूर से ही दफा 

Wednesday, 13 April 2016

हर्फ़

                         1
वर्षों पुराने ,कुछ लम्हों के तेरे साथ ने
हमें जिंदगी भर का , मुरीद बना  दिया


                         2
लिखे जो कुछ हर्फ़ तेरी याद में
मेरे लिए उदासी का आलम बन गए 

Tuesday, 12 April 2016

अहसास

रात के अँधेरे में, जब सब सो जाते हैं
बंद आँखों में तेरी बांसुरी बजाती हुई मनमोहिनी छवि को बसा कर
साथ में तेरे नाम को जपते हुए
आहिस्ता आहिस्ता तुझमे समाते हुए
साथ में होता है एक प्यारा और खूबसूरत अहसास
कान्हा तू है मेरे पास ,पास और  बहुत पास 

Monday, 11 April 2016

सुकून

महसूस होता है जैसे,
सुकून में है जिन्दगी  मेरी
अब याद जो कम  आता है तू
याद जब आता था यारा ,
बहुत तड़पाता था तू
तब तेरी यादों में बहुत मशरूफ थे हम,
अब इक खालीपन सा
जो आ गया है जिंदगी में
क्या करें,वो समेटा  नहीं जाता

Friday, 8 April 2016

U can try some daru ..would help

कल ही मुझे किसी अपने ने दी इक सलाह
जो मेरे दिल को गयी बहुत  भा
उसने बड़े प्यार से मुझे कहा
वैसे तो तुम्हारी कविताएं बढ़िया हैं
फिर भी ,दीदी तुम दारु का  करो नित सेवन
जिससे  निखर जायेगा तुम्हारा लेखन
नित नयी कविताएं निकल के आएँगी
गजलें और नज्मे भी उभर आएँगी

Wednesday, 6 April 2016

हमारा दोस्ताना और वो कॉलेज का जमाना

प्यारी रीता तुम्हे भी याद होगा,वो 42 -44 सालों पुराना  कॉलेज का जमाना
वो लालबाग  कॉलेज हमारा ,पैदल चल कर साथ आना जाना
रास्ते भर खूब गप्पे लड़ाना,हंसना और मुस्कराना
जूलॉजी की वो मैम वर्मा ,बॉटनी की वो रेवा भाटिया
नहीं भूली होगी तुम भी, उस हैंडसम बायोलॉजी के प्रैक्टिकल एग्जामिनर का आना
हमारी टीचरों का उस पर फ़िदा हो जाना ,दुसरे दिन ही मैम भाटिया का बॉबकट करवाना
वो मैम  वर्मा का सज धज के आना, हम सब स्टूडेंट्स का एक्जामिनर  से ऑटोग्राफ लेना
जैसे वो हो कोई सेलिब्रिटी पुराना
आर्ट फैकल्टी की टीचर को पीठ पीछे मुर्गी कह कर बुलाना
कितना सुहाना था वो मस्त जमाना

घर दूर होने के बावजूद भी हम लोगों का साथ साथ रिक्शे से महिला कॉलेज जाना
वो सड़क किनारे इक दूजे का इंतजार करना
वो आवारा लड़को का कभी कभी गुड मॉर्निंग करना
हमारा सुन कर भी उसे अनसुना करना
वो बॉटनी की  पीएचडी होल्डर मैम ईश्वरी भी याद होंगी
जिस टॉपिक को पढाना शुरू करती थी
पढ़ाते हुए उसे भूल कर  दुसरे टॉपिक पर पहुँच जाती थी
वो इनओर्गनिक केमिस्ट्री के सर का लच्छेदार बातें बनाना
नाम क्या था उनका ,नहीं याद आ रहा
वो आर्गेनिक  केमिस्ट्री की टीचर का लोरी  सुनाते हुए पढ़ाना
वो क्लासेज के बाद ऐन.  सी. सी. के लिए रुकने पर, हम सब का मुँह बनाना
बाद में अलग पढाई की वजह से हमारा जुदा  हो जाना, फिर भी एक दुसरे से मिलते रहना
आज भी याद है मुझे वो तुम्हारी भाभियों से बतियाना ,
भतीजे ,भतीजियों को गोद  लेकर खेलाना
वो तुम्हारी बैठक में बैठ कर आराम से अदरक, काली मिर्च और गुड की चाय पीते हुए
इक दुसरे को अपना हर एक राज बताना ,एक दुसरे से कुछ भी न छुपाना
शादी के बाद भी मिलने की कोशिश करना, 42 -44 वर्षों  का है हमारा ये दोस्ताना पुराना

दूर रह कर फेसबुक  और व्हाट्सप्प की बदौलत
 हम अब भी है आस पास
फर्क इतना है पहले हम दोनों  थे कुंवारे
अब एक एक बहु की बन गए है सास.
 हाहाहा


श्रद्धांजलि

स्वर्गीय ऊषा दीदी को समर्पित 

जब जीजा जी ने ये कहा ,
लोग पूछते हैं ,क्या आपका घर बिका
मैं कहता हूँ,मेरा घर क्या  बिका
मेरा तो आशियाँ  उजड़ा
नहीं जानता, कहाँ नया ठिकाना बनाऊंगा
नहीं जानता, कहाँ नया आशियाना  बनाऊंगा
ये सब मेरे लिए कितना दुखदायी है
बड़े  प्यार से  उसने ये दीवारें बनायीं थी
बड़े  शौक से उसने ये  टाइल्स लगवाईं थी
बढे यत्न से करती वो इनकी सफाई थी
मेरे लिए उसकी यादों का निशाँ उजड़ा
मेरा घर क्या बिका ,मेरा तो आशियाँ उजड़ा

जीजा जी के ये उद्गार देख हम सब घबरा जाते हैं
उनके सामने दीदी तुम्हे याद करने से भी कतराते है
तुम्हारा इतनी जल्दी दुनिया से उठ जाना
जीवन पे हमारा विश्वास  डिगा गया
हमें अंदर से कमजोर बना  कर
जिंदगी की असलियत दिखा गया

हर मौके बेमौके पर दीदी तुम साथ निभाती थी
हर सुख दुःख में हमारे दीदी तुम ढाल बन जाती थी

दीदी हम सबको  बहुत याद तुम्हारी आती है
तुम्हारी याद हम सबको  बहुत सताती है।

Saturday, 26 March 2016

भरे पूरे परिवार

कल रात हम अस्त व्यस्त थे
या यूँ कहिये कि अकेलेपन से त्रस्त थे
हमारे पतिदेव भी अकेलेपन से ग्रस्त थे
पर दिखा रहे थे, जैसे टी. वी. क्रिकेट में मस्त थे

ऐसे मे 30 बरस पुरानी  अपनी दादी सास की बात याद आई ,
वो कहती थी ,तुम लोग २ बच्चे पाल कर थक जाते हो ,
अभी २-४ बच्चे और होने चाहिए
तब उनकी बातों को हमने हंसी में उड़ा दिया
पर अब इस उम्र में हमें भी  कुछ ऐसा ही लगता है

काश हमारे  बच्चे और २-४ होते
कुछ पास और कुछ बाहर होते
उनके भी भरे पूरे परिवार होते
घर में आते जाते खूब नाते  रिश्ते दार होते
संग में 4 -6 दोस्त यार होते
परिवार संग  सब तीज त्यौहार होते
सुख दुःख संग झेलने को सब साथ तैयार  होते
हम अपने बच्चों और परिवार में व्यस्त  होते
यानि की हम पूरे मस्त होते




Thursday, 24 March 2016

मस्ती

किन्ही हलके फुल्के क्षणो में,
हमने अपने पतिदेव से पुछा,
लोग हमारे बारे में क्या सोचते होंगे
वो मुस्करा कर बोले ,
कहते होंगे बहुत नाजुक मिजाज हैं ,
 जब देखो ये तो रहते बीमार हैं    

Tuesday, 22 March 2016

होरी

सखी
 मैंने कान्हा संग खेली  आज होरी री
 मला गुलाल गालों पे उनके
भिगोदी उन्होंने मेरी साड़ी बरजोरी री
उनके प्रेम का रंग  ऐसा चढ़ा  री
छोड़ छाड़ दुनिया मैं उनकी होली री 

Wednesday, 16 March 2016

इंटेलेक्चुअल

मैंने अपने देवर से कहा
आप हमे व्हाट्सप्प पर लम्बे लम्बे 
पॉलिटिकल मैसेज भेजते हैं किसलिए 
वो मुस्कराकर बोले भाभी आप इंटेलेक्चुअल  है इसलिए 
मैं सुनकर सकपकाई, थोड़ा घबराई 
न ही मैंने कभी कही असहिष्णुता पर लेक्चर है दिया 
न ही देशद्रोह पर दी कभी कोई स्पीच 
मैं समझ नहीं पा रही 
वो मेरी तारीफ़ कर रहे हैं  या टांग रहे हैं खींच  

Monday, 7 March 2016

मुझे नहीं आता

दुनिया को खुश करना बहुत कठिन है भ्राता
मेरे जीवन का अनुभव मुझे यही बताता

महफिलें सजाना ,मुझे नहीं आता
महफ़िलों में जाना , मुझे नहीं भाता
पीना और खाना, मुझे न सुहाता
लेकिन दुनिया को, यही चलन है लुभाता

इसीलिए मेरा है ये मानना
कि दुनिया को खुश करना बहुत कठिन है भ्राता
मुझे नहीं आता ,ये मुझे नहीं आता 

Friday, 4 March 2016

ममता

कभी कभी रात के अँधेरे में
तकिये पर रख कर सर
अधखुली उनींदी आँखों से
देखते है कुछ ख्वाब
अपने बच्चों के लिए
कैसे हो वो सब साकार
फिर इसी उधेढ़ बुन में खो जाते हैं
रब को भी मनाते हैं
नींद नहीं आती जब तक
ममता में ही गोते लगाते हैं

Sunday, 28 February 2016

है जिंदगी

बेहिसाब ग़मों का फ़साना, है जिंदगी
उन्हें अपनों से छिपाना, है जिंदगी
मेरे मुस्कराने पे न जाओ यारों
कई गम ऐसे भी हैं
जिन्हे खुद को भी न बताना, है जिंदगी




To live
is to find measureless pain,
is to hide it from others, to feign
a smile and somehow still mean
when pain's edge is keen.
Translation by dear Akhil katyal 

Monday, 22 February 2016

सोच

अपने जवान बेटे को जब माँ ने कुछ समझाया
कुछ अपने जीवन का अनुभव बतलाया

वो बोला ये सब छोड़ो माँ
मुझे जीवन में आगे बढ़ने दो

 जीवन में क्या क्या करना है
मुझे खुद डीसाइड  करने  दो

माँ को ये सब समझ ना आया
उसने खुद को एक दोराहे पर पाया

वो समझ न सकी,
 क़ि  मै दुखी होऊ

 जब बेटे को अपने जीवन में  मेरी कोई जरूरत नहीं
तब मेरे जीने का  क्या अर्थ हुआ

या ये सोच कर खुश होऊं
क़ि बेटा मेरा  अपने निर्णय लेने में  समर्थ हुआ

Wednesday, 10 February 2016

सर्दी का मौसम

ये सर्दी का मौसम ,
 बादलों की आवाजाही
साथ में बर्फीली हवा
लगता है जैसे ,बूढी हड्डियों को
 मिल रही हो  कोई सजा 

Saturday, 6 February 2016

गुजरा जमाना



आज फिर याद आ रहा है वो गुजरा जमाना

वो बचपन में , बेफिक्री का आलम
वो नाचना वो गाना ,वो हंसना खिलखिलाना
वो मस्त जवानी का बंदिशों का जमाना
छोटे भाई को अंग रक्षक की तरह साथ ले जाकर
वो सहेलियों से मिलने जाना

आज के जमाने से बहुत अलग था,वो हमारे समय का जमाना
शादी के बाद कई दिनों तक , पति से बात करते समय
 लजाना शर्माना , वो रूठना मनाना
पीलीभीत और शाहजहाँपुर में बच्चों और दोस्तों के साथ
वो पिकनिक पर जाना ,खेतों खलिहानों में बात बात में सबका ठहाके लगाना

देहरादून से हर महीने दो महीने में मसूरी का चक्कर लगाना
वो पहाड़ों का खूबसूरत समां, वो बादलों का पास आना
२-४ महीनों में हरिद्वार जाना ,
वो हर की पेढ़ी  पर नहाना ,  मंदिरों के दर्शन करना कराना

लखनऊ में बच्चों को पढ़ाना, उनके साथ समय बिताना
वो वृन्दावन जाकर कई बार , कान्हा के संग होली  मनाना
उनकी मनमोहनी छवि को एकटक देखकर आँखों में बसाना
इस्कॉन मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर ,घंटों हरि धुन में डूब जाना

जानते है ,अब न लौटेगा वो गुजरा जमाना
फिर भी अच्छा लगता है और ऐसा लगता है जैसे
 किसी पुरानी अच्छी फिल्म को दुबारा देखना दिखाना
आज फिर याद आ रहा है वो गुजरा जमाना








Monday, 1 February 2016

हाय हाय डायबिटीज

रात सपने में अमिताभ बच्चन जी ने मुझे, अपने हाथों से खिलाई मिठाई
पहले मैंने कुछ ना  नुकुर की, उन्होंने  तब  किया आग्रह
 मैंने  फिर दोनों हाथों से उसे,प्रसाद रूप में लिया,
बहुत चाव से खायी, मैंने वो मिठाई

उठते ही जब ये बात मैंने पतिदेव को बताई
बच्चन जी का नाम सुनते ही
उनका मुँह ऐसा बना,जैसे जली हुई कढ़ाही
मैंने हारी न हिम्मत और गूगल पर सर्च लगायी
अगर सपने में सेलिब्रिटी दिखे तोह, इसका अर्थ क्या होता है भाई
पर उसकी इंग्लिश बहुत मुश्किल थी,मुझे कुछ समझ न आई

तब मैंने अपने प्रोफेसर बेटे को ,इक कॉल लगायी
वो बोला , माँ मैं जरा व्यस्त हूँ ,जो कहना है मैसेज कर दो
मेरे मैसेज करने के एक घंटे के बाद ,उसकी एक लम्बी  ई मेल आई
उसने मुझे फटकार लगायी 
लिखा था ,माँ क्या गजब करती हो ,आपकी  डायबिटीज बढ़ी हुई है
दिन में तो परहेज होता नहीं और आपने सपने में भी खायी मिठाई
अब कसम खा लो, चाहे अमिताभ बच्चन हो या खुद आये कन्हाई
आप नहीं खायेंगी कभी कोई मिठाई, पढ़ कर ये सब मै थोड़ा सकपकाई

अमिताभ जी से मिलने की सारी ख़ुशी ,हो गयी धाराशायी



Thursday, 28 January 2016

ठाकुर

कैसे करूँ  दुःख में उन  से फ़रियाद,
सब कहते हैं वो ठाकुर, तो है अगम, अगाधि,

तभी भीतर से आवाज  इक आई ,
कण-कण  में है, उस प्रभु का वास,
इस तथ्य का कर ले रे मन, तू अटल विश्वास,
दौड़े  दौड़े आएंगे ,वो खुद तेरे पास,
 कर तो ले ऐ बन्दे,  दिल से उन्हें याद
श्रद्धा से इक बार तू कर, उनसे फ़रियाद .

अगम (inaccessible )
अगाधि  (incomprehensible)
ठाकुर (Lord)

Wednesday, 27 January 2016

हल्की फुल्की मस्ती

जब भी लगती है मुझे, कोई नयी बीमारी ,
मन ही मन सोचती हूँ ,बढ़ती उम्र पड़ी शरीर पर भारी ,
बीमारियां सहते सहते मैं ,बन गयी इतनी मजबूत ,
कई बार अस्पताल से बच कर आ गयी ,है इसका सबूत,

डबलिन से मेरी भतीजी पल्लवी ,है मुझे समझाती ,
बुआ आप बेकार ही चिंता करती हैं उम्र की ,
इस उम्र की महिलाएं ,यहाँ जिम और तैराकी को हैं जाती,
कई तो आपसे बड़ी ,शादी हैं यहाँ रचाती,

मैंने उसे समझाया, प्यारी बच्ची
उन्होंने बचपन से उबले अंडे, बीफ,चिकन और वाइन पिया खाया
जबकि हमने शुरू से ही ,खस्ता ,जलेबी, जैसा तर माल पचाया
अब पछताए होत क्या,जब चिड़िया चुग गयी खेत,
अरे अभी भी अच्छी है, कइयों से अपनी सेहत.
 


Tuesday, 12 January 2016

मोबाइल

दोस्तों साइंटिस्ट लोगों ने मोबाइल का क्या बनाया गजब क्रिएशन
लगता है इससे मेरा पिछले जनम का है जैसे कुछ रिलेशन
जब हाथ में मोबाइल आता है ,तब कुछ और नहीं भाता है
तब पतिदेव और बच्चों को तो इग्नोर करती ही हूँ
साथ में डैडी ,मम्मी जी को भी भूल ही जाती हूँ
स्काइप ,फेसबुक ,और व्हॉट्स एप्प ,हैं ऐसे नए चोंचले
मुझ बूढी चिड़िया को लगते हैं जैसे अपने घोंसले
हँसियेगा नहीं आपको इक राज की बात बताती हूँ
साथ का वीडियो देखिये, मैं भी कुछ कुछ ऐसी ही होती जाती हूँ

Monday, 4 January 2016

नववर्ष

इस बार नववर्ष हमने कुछ अलग ढंग से
 डॉक्टर्स और नर्सेज के साथ मनाया 
हुआ यूं यारों , 2015  जाते जाते दगा दे गया
हमारी तबियत नासाज कर, हमे डरा गया
अच्छे भले घर बैठे थे ,अस्पताल भर्ती करा गया
पर पतिदेव,बच्चों और अपनों का साथ
बुरे ग्रह  नक्षत्रों से लड़ने का हमारा  हौसला  बढ़ा गया
प्रभु कृपा से 2016 ने 3 -4  दिनों में
हमे स्वस्थ कर वापिस घर पहुँचा  दिया
और आप सब के साथ ने हमे मस्त बना दिया