Thursday 19 November 2015

भूली बिसरी यादें

शहर की उन गलियों से आज भी जब हम गुजरते हैं.
भूली बिसरी यादें आ आ  के हमें सताती हैं
साँसें जो रुक रुक चलती हैं
दबी हुई चिंगारी को हवा दे जाती हैं