Sunday 7 September 2014

याद

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रात भर तेरी याद में, हम रोते  रहे
मुहँ पे डाले लिहाफ, तकिया भिगोते रहे
                 
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दिलों दिमाग की यादों की किताब से
तेरे साथ जो गुजारे, उन लम्हों के पन्नो को फाड़  दूँ
फिर मैं तो इक खुली किताब रह जाऊँगी
जो भी आये, पढ़े, और मस्त हो जाए 

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