Friday 13 May 2016

चिड़िया

कभी कभी मन करता है
मैं हलकी फुलकी बन जाऊँ
दोनों हाथो को पंखो की मानिंद फैलाकर
इक चिड़िया सी अनन्त आकाश में उड़ जाऊँ
कभी इधर घूमूँ ,कभी उधर घूमूं
बादलों के भी आर पार आऊँ जाऊँ
ऐसे ही, उस अपरम्पार की सारी  सृष्टि देख आऊँ
ऐसे ही,उस रचनाकार की रचना  में मंडराऊँ

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