Saturday 11 August 2018

घुट घुट कर जीना ही नियति है









घुट घुट कर जीना ही नियति है
लड़की हूँ  ना इसलिए


खिड़कियां खोल नहीं सकती
अगर खिड़की खोल बैठी तो
सौ सौ प्रश्न उठते
क्यों  बैठी
 क्या देख रही हो
 किसी का इंतजार है क्या
कैसे कहूँ
कि  देखना चाहती हूँ
उड़ते हुए पाखी को
छूना  चाहती हूँ मैं भी
हाथ निकाल
 बारिश की बूंदो को
महसूस करना चाहती हूँ
सावन की बूंदो से उठी
तप्त धरती की सौंधी सी महक को
व्यक्त कर नहीं सकती
भावनाएं अपनी

खुल के हंस बोल नहीं सकती
अपने घर में भी हंसी
तो डांटा जाता
शऊर नहीं है क्या
लड़की हो,आवाज धीरे रखा करो
तुम्हे पराये घर जाना है

जहाँ जायी, वहां परायी
जहाँ ब्याही , वहां भी कहलायी परायी
वहां पर्दा ,यहाँ घूंघट

कहने को तो कहा जाता
हमे प्यारी बहुत है
अपनी बेटियां और बहुएं
मगर  बोली जहाँ खुल कर
उद्दंडता हो गयी
उसकी सजा फिर लम्बे समय तक भुगती
इसी लिए पी गयी सब अंदर ही अंदर
लड़की हूँ न सिर्फ इसलिए



माना  कि आज का समाज पहले  से बहुत जागरूक हो चुका  है, फिर भी कहीं कहीं आपको लड़कियों की यही स्थिति देखने को मिलेगी |
चित्र गूगल साभार 

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