Saturday 22 September 2018

चमत्कार

कितनी हसरत दिल में थी
तुम से मिलने की मगर
तुम ने इक बार मुड़  के
  देखा भी  नहीं

फ़िक्र करते हो दूर अपने भक्तों की
मेरी बार फिर क्यों देर इतनी करी
माना  आस्था मेरी गोते खाती थी
हाँ हूँ मै ढेर अवगुणों से भरी

छोडूंगी न आस आखिरी स्वांस तक
देर से ही सही , सुनता है तू अपने बच्चो की
चमत्कार तेरी दुनिया में होते है ना
कान्हा मेरी भी झोली तुझे भरनी होगी






No comments:

Post a Comment