SUNITA KATYAL POETRY
Monday 16 May 2011
लक्ष्य
रीता रीता सा ये मन ,
रीता रीता ये जीवन ,
एक प्रशनचिंह बन कर रह गया.
क्या है इस जीवन का लक्ष्य
अब तक समझ नहीं आया
कभी लगता है कर लिया
जो करने आये थे
कभी लगता है
अभी इसका छोर नहीं पाया
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment