Sunday 16 February 2014

सर्द रातें

कब ख़त्म होंगी हाड़  कंपाती ये सर्द रातें
अवसाद भरी लम्बी काली जर्द रातें
 मुझे नहीं भाती  ये ठिठुराती रातें
कुछ धूप निकले, कुछ ठण्ड कम हो जाए
दिल में हो फागुनी हुलारे,बहे फागुनी बयारें
दिन हो उल्लसित , हो मस्त रातें 

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