Sunday 3 July 2016

छुट्टियां

रोटी सेंकते हुए आवाज लगाने को होती हूँ
आओ बेटा, हमारे साथ खाना खा लो
याद आता है तभी, वो तो चला गया है
रात सोते में, जैसे आवाज देने को होती हूँ
याद आता है तभी, साथ वाला कमरा खाली है
पलकें नम हो जाती हैं
दवाई खाने के बाद भी, नींद नहीं आती है
जागते हुए ही, फिर सुबोह हो जाती है
 बच्चों के साथ दिन रात, हवा से उड़ जाते हैं
आँखों के आंसू अगली छुट्टियों का,इंतजार कराते हैं


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