Saturday 9 July 2016

सागर किनारे दूर जो देखा

सागर किनारे दूर जो देखा
सांझ का सूरज लालिमा समेटे
सागर से मिलने को था जा रहा
गजब था नजारा
घड़ी दो घड़ी का मिलन था वो प्यारा
सूरज को सागर में देख समाते
अँधेरा लगा अपने पंख फैलाने
आती जाती लहरें टकरा रही थीं
अचानक से इक बड़ी लहर ने जो भिगोया मुझे
वापिस मैं चल दी हौले हौले
 जैसे हो कोई  दीवाना
मन में समेटे हुए
सागर, सूरज का मिलन वो सुहाना


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