Wednesday 26 June 2013

कुछ हल्का फुल्का

बच्चों सुनाये क्या तुम्हे अपनी कहानी
भरी जवानी में भी हमने न की  कोई नादानी

अब तो भूल गए सब ,यारों दोस्तों से की थी जो मुलाकातें
याद है सिर्फ और सिर्फ घर गृहस्थी की बातें
सुबह जगाने के लिए पतिदेव पिलाते हैं चाय
ऑफिस जाते समय हम उनको करते हैं बाय बाय
फिर माता श्री से होती है गुफ्तगू
फिर थोडा सा आराम और सहेलियों से गुटरगूं
शाम को मोबाइल से पूछते हैं बच्चों का हाल चाल
रात को बनाते  हम रोटी और दाल

बस अब तो रह गयी यही जिंदगी
थोड़ी गृहस्थी और रब से बंदगी 

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