Wednesday 6 April 2016

श्रद्धांजलि

स्वर्गीय ऊषा दीदी को समर्पित 

जब जीजा जी ने ये कहा ,
लोग पूछते हैं ,क्या आपका घर बिका
मैं कहता हूँ,मेरा घर क्या  बिका
मेरा तो आशियाँ  उजड़ा
नहीं जानता, कहाँ नया ठिकाना बनाऊंगा
नहीं जानता, कहाँ नया आशियाना  बनाऊंगा
ये सब मेरे लिए कितना दुखदायी है
बड़े  प्यार से  उसने ये दीवारें बनायीं थी
बड़े  शौक से उसने ये  टाइल्स लगवाईं थी
बढे यत्न से करती वो इनकी सफाई थी
मेरे लिए उसकी यादों का निशाँ उजड़ा
मेरा घर क्या बिका ,मेरा तो आशियाँ उजड़ा

जीजा जी के ये उद्गार देख हम सब घबरा जाते हैं
उनके सामने दीदी तुम्हे याद करने से भी कतराते है
तुम्हारा इतनी जल्दी दुनिया से उठ जाना
जीवन पे हमारा विश्वास  डिगा गया
हमें अंदर से कमजोर बना  कर
जिंदगी की असलियत दिखा गया

हर मौके बेमौके पर दीदी तुम साथ निभाती थी
हर सुख दुःख में हमारे दीदी तुम ढाल बन जाती थी

दीदी हम सबको  बहुत याद तुम्हारी आती है
तुम्हारी याद हम सबको  बहुत सताती है।

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