Wednesday 18 July 2018

आँखों की चमक

बचपन और अल्हड़ जवानी
 की,वो उन्मुक्त हंसी
आँखों में एक चमक सी ला देती थी
कुछ दिन पूर्व, हमने पतिदेव से कहा
हमारी आँखे कुछ बुझी बुझी, उदास सी क्यूँ हैं
"तुमने आँखों का ऑपरेशन जो है कराया"
ऐसा कह, उन्होंने बात को हवा  में उड़ाया
 नहीं समझ सकता कोई, मेरे मन की व्यथा
मकड़ी जैसे अपने ही बुने और सँवारे
घरोंदे  में उलझ सी गयी हूँ
मेरा  व्यक्तित्व, कहीं खो गया
चेहरे  पर फीकी सी हंसी दे गया

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