Thursday 19 July 2018

यादों का संसार

हम सब की प्यारी बुआ
कुछ वर्षों से हुई तन्हा
सुबह शाम सत्संग में बिताती
अपने सम्बन्धियों से भी मिलती मिलाती
         बच्चे उनके हैं विदेश में
         रच बस गए वो  सब वहां
         फ़िक्र उनको थी बहुत अपनी माँ की
         बोले, माँ सामान पुराना  सब dispose कर दो
         आ जाओ आप हमेशा के लिए यहाँ
इक दिन बुआ बोली मुझसे
कुछ रुआंसी सी, आँखे भर आयी थी
बच्चो के लिए ये सामान पुराना है
मेरे लिए सारा जहाँ है
इसमें है तेरे  अंकल की यादें समायी
इस गिलास से उनको जूस पिलाती थी
ये कंबल, मैं उनको ओढ़ाती थी
सब साड़ियाँ उन्होंने चाव से खरीदी थी
ये शाल भी मुझे गिफ्ट दी थी
        पर बच्चों के आगे वो झुक गयी
        आज वो विदेश में रह रही
        अब भी उनको चिंता सताती वहां
         छोड़ गयी जिस संसार को वो यहाँ
यही हाल मेरी माता श्री का भी है
पीतल और कांसे के ढेर बर्तन
 उनके दहेज़ के, सहेज कर हैं रखे
मैं बोली, लाइए इनको बेच दूँ
अब हैं ये किस काम के
माँ बोली, मेरे बाद इनका
चाहे कुछ भी करना
अभी इनको ऐसे ही रहने दो
        ये देख अब समझ आ गया
        सामान होता नहीं कोई पुराना
        बसा होता है उसमे,किसी की
        यादो का संसार यहाँ
 
     

 

     



       

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