Sunday 15 September 2013

आधुनिकता

 महानगरों की नित नयी
  ऊँची  उठती इमारतों को देखकर
मेरा  दिल जाता है घबरा
 २० वी ,२२ वी  मंजिलों पर
 एसी लगे बंद कमरों में
रहने वालों  बच्चों का
 बचपन क्या  होगा
बच्चे टी  वी, इन्टरनेट
 की देख देख रंगीनियाँ
बचपन को पीछे छोड़ ,
जल्दी हो जायेंगे जवां
कहाँ वो तितली पकड़ना
अमिया और कच्चे पके अमरुद तोड़ कर खाना
 जामुन तोडना और बटोरना,
 कहाँ गन्ना चूसना
कहाँ क्यारियों से गिलहरी भगाना

आजकल के बच्चों को चाहिए ब्रांडेड कपड़े
और ब्रांडेड पिज़्ज़ा और बर्गर
साथ पेप्सी या कोला भी जरूरी है
दूध पीना  तो बच्चों की  मजबूरी है

आधुनिकता के नाम पर हम
 अपने बच्चों को क्या परोस रहे हैं
प्रकृति से उनका नाता ही तोड़ रहे हैं
उनके बचपन  को पीछे, बहुत पीछे छोड़ रहे हैं 

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