Thursday 4 July 2013

बेअन्त

संत मसकीन जी को श्रद्धांजलि स्वरुप समर्पित 
जो कि कई वर्ष पूर्व बेअन्त में समां चुके है। 



कभी कभी मैं सोचती थी
मैं कौन हूँ ,मैं कहाँ से आई
और कहाँ को जाना है ,

अब इस उम्र में पता चला
जीवन का एक लक्ष्य बनाना है
मुझे बेअन्त  में समाना है
मुझे बेअन्त  में समाना है ,

स्वांस स्वांस अनमोल है
नर तन का बड़ा मोल है
समय व्यर्थ न गंवाना है
मुझे बेअन्त  में समाना है

जीवन की सांझ है आ चुकी 
आगे दिख रहा अंत है 
मुझे अंत के आगे जाना है 
मुझे बेअन्त  में समाना है

जहाँ नित्य नवीन आनंद है 
जहाँ आनंद ही आनंद है 
मुझे आनंद में समाना है 
मुझे आनंद में समाना है .

No comments:

Post a Comment